Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म और विलाप किया हाय हाय पुत्र तू कहां गया शघ्रि आव मोसे वचन कहो, मैं शोकके सागरमें मग्न SM उसे निकास में पुण्यहीन तेरेमुख देखे बिना महा दुःखरूप अग्निसे दाहको प्राप्तभई मुझे सातादेवो और
सीता वाला पाणी रावण उसे बंदीगृहमें डारी महा दुःश्वसे तिष्ठती होयी निर्दई रावण ने लक्षमणके
शक्ति लगाई सो न जानिए जीव है के नहीं हाय दोनों दुर्लभ पुत्र हो, हाय सीता तू पतिव्रता क्यों | दुःखको प्राप्तभई यह वृतांत कौशल्या के मुख सुन नारद अति खेदखिन्न भया बीया धरतीमे डारदई और
अचेत होयगया फिर सचेत होय कहता भया हे माता तुम शोक तजो मैं शीघ्रही तुम्हारे पुत्रोंकी वार्ता क्षेम कुशल की लाऊहूं मेरे सब बातमें समर्थ है यह प्रतिज्ञाकर नारद बीणको उठाय कांधे धरी आकाश मार्ग गमन किया पवन समान है वेगजिसका अनेक देश देखतालका की ओर चला सो लंकाके समीपजाय बिचारी राम लक्ष्मणकी वाती कौन भांति जानियेमे आवे जो रामलक्षमण की वार्तापछिए तोरावणके लोकों से विरोध होय इस लिये रावणकी वार्ता पूछिये तो योग्य है रावण की बार्ता कर उनकी वार्ता जानी जायगी यह विचार नारद पद्म सरोवर गया वहां अंतःपुर सहित अंगद क्रीडा करता था उसके सेवकोको रावणकी कुशल पूछी वे किंकर सुनकर क्रोधरूप होय कहतेभए यह दुष्टतापस गवण का मिलापी है इसको अंगदके समीप लगए जो रावणकी कुशलपछेहै नारदने कहीमेगरावणसे कछुप्रयोजन नहीं तब किंकरों ने कही तेराकछु प्रयोजन नहीं तो रावणकी कुशल क्यों पूछेथा तब अंगदने हंसकर कही इस तापतको पद्मनाभिके निकटलेजावो सो नारदको खींचकर लेचले नारद विचारेहै नजानिये कौन पद्मनाभिहै कौशल्याका पुत्र होयतो मोसे ऐसी क्यों होय ये मुझे कहां लेजायहें मैं संशयमें पडाहूं जिन
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