Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुरा
राजा दशरथ की राणी. प्रशंसा योग्य श्रीरामचन्द्र मनुष्यों में रत्न तिनकी माता, महा सुन्दर लक्षण १२ की धरण हारी तुम को कौन ने रुसाई जो तुम्हारी आज्ञा नमाने सो दुरात्मा है वारही उसका राजा दशरथ
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निग्रह करें तब नारदको माता कहती भई हे देवर्षे तुम हमारे घरका वृतांत नहीं जानो हो इसलिये कहो हो और तुम्हारा जैसा वात्सल्य इस घरसेथा सो तुम विस्तीर्ण किया कठोर चित्त होयगए अब यहां आावना ही तजा अब तुम बातही न बूझो हे भ्रमणप्रिय बहुत दिन में आए तब नारदने कही हे माता धातुकी खंड द्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र वहां सुरेंद्र रमणनामा नगर वहां भगवान तीर्थंकर देवका जन्म कल्याणक
या सो इन्द्रादिक देव आए भगवानको सुमेरुगिरि लेगए अद्भुत विभूतिकर जन्माभिषेक किया सो देवाधिदेव सर्व पाप नाशनहारे तिनका अभिषेक मैं देखा जिसे देखे धर्मकी बढ़वारी होय वहां देवों ने आनन्द से नृत्य किया श्री जिनेंद्र के दर्शन विषे अनुराग रूपहै बुद्धि मेरो सो महामने हर धातकी खंड विषे तेईस वर्ष मैंने सुखमे व्यतीत किये तुम मेरी मातासमान सो तुमको चितार इस जम्बूद्वीप के भरतचेत्र में आया अब कोइक दिन इस मंडलही में रहूंगा अब मोहि सब वृतांत कहो तुम्हारे दर्शन
आया हूं तब कौशल्याने सर्व वृतांत कहा भामंडलका यहां आावना और विद्याधरों का यहां आवना और भामंडलको विद्याधरों का राज्य और राजादशरथका अनेक राजावों सहित वैराग्य और रामचन्द्रका सीता सहित और लक्षमणके लार विदेशका गमन फिर सीताका वियोग सुग्रीवादिकका राम से मिलाप रावण से युद्ध लंकेशकी शक्तिका लक्षमण के लगना फिर द्रौणमेघ की कन्याका वहां गमन एती खबरतो हमको है फिर क्या भया सो खबर नहीं, ऐसा कह महादुःखित होय अश्रुपात डारती भई
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