Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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। प्रमोदका भरा इनका बहुतसन्मानकरताभया, औरयहप्रणोमकरअपनेयोग्यासनपरबैठे, अतिसुन्दरहै चित्त पुराण। जिनका यथावत बृतांत कहतेभए, हे प्रभो राम लक्ष्मणने रावण को हता विभीषणको लंकाका राज्य दीया
श्रीराम को बलभद्रपद और लक्ष्मण को नारायणपद प्राप्त भया, चक्ररत्न हाथ में आया तिन दोनों भाइयों के तीन खंड को परम उत्कृष्ट स्वामित्व भया, रावण के पुत्र इन्द्रजीत मेघनाद भाई कुम्भकर्ण जो बंदीगृह में थेसो श्रीराम ने छोड़े उन्होंने जिन दीक्षाघरनिर्वाण पद पाया और गरुडेन्द्र श्रीराम लक्ष्मण से देशभूषण कुलभूषण मुनि के उपसर्ग निवोरिखकर प्रसन्नभए थे सोजबरावण से युद्धभया उसहीसमय सिंह वाण और गरुडवाण दिये, इसभांति रोम लक्षमण के प्रताप के समाचार सुन भरत भूप अतिप्रसन्न भए तांबल सुगंधादिक तिन को दिये और इनको लेकर दोनों मोताओं के समीप मरत गया, राम लक्षमण की माता पुत्रों की विभति की वार्ता विद्याधरों के मुख से सुन पानंद को प्राप्त भई उसही समय आकाश के मार्ग हजारों वाहन विद्यामई स्वर्ण रत्नादिक के भरे आए और मेघमाला समान विद्याधरों के समूह अयोध्या में आये जैसे देवों के समूह पावें वे आकाश विषेतिष्ठे नगर विषे नाना रत्नमई बृष्टि करते भए रत्नों के उद्योत कर दशों दिशा विषे प्रकाश भया अयोध्याविषे एक एक गृहस्थके घर पर्वत समान सुवर्ण रत्नों की राशि करी अयोध्या के निवासी समस्त लोक ऐसे अति लक्षमीवान किए मानों स्वर्ग के देव ही हैं और नगर में यह घोषणा फेरी कि जिसके जिस वस्तु की इच्छा होय सो लेवो तब सब लोक प्राय कर कहते भए हमारे घर में अट भण्डार भरे हैं किसी वस्तु का बांछी नहीं अयोध्या में दरिद्रता का नाश भया, राम लक्षमण के प्रतप रूप सूर्य कर फूल गए हैं मुख कमल जिन के ऐसे अयोध्या के नर
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