Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
४८ १६ ।।
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अथानन्तर सूर्य के उदय होतेही बलभद्र नारायण पुष्पक नामा विमान में चढ़कर अयोध्या को गमन करते भए प्रकार के वाहनों पर थारू विद्याधरों के अधिपति राम लक्ष्मण की सेवा में तत्पर परिवार सहित सँग जे छत्र और ध्वजावोंकर रोकी है सूर्य की प्रभा जिन्होंने आकाश में गमन करने दूर से पृथिवीकी देखते जाय हैं पृथिवी गिरि नगर बन उपवनादिक कर शोभित लवण समुद्र को fast fame of के भरे लीला सहित गमन करते मागे चाए कैसा है लवण समुद्र नानाप्रकार के जलचरजीवोंके समूहकर भरा है रामके समीप सीता सती अनेक गुणांकर पूर्ण यानों साक्षात लक्ष्मीही है सो सुमेरु पर्वतको देखकर रामको पूछतीभई हे नाथ यह जंबूद्वीपके मध्य अत्यन्त मनोग्य व कमल समान क्या दीखे है तब राम कहतेभर हे देवी यह सुमेरु पर्वत है जहां देवाधिदेव श्रीमुनि सुव्रतनाथका जन्माभिषेक इन्द्रादिक देवों ने किया कैसे हैं देव भगवान् के पाँचो कल्यानक में जिनके प्रति हर्ष है यह मुंगेरु रत्न मई ऊंचे शिखरों कर शोभित जगत् में प्रसिद्ध है और फिर आगे जाकर कहते भयं यह दंडक न है जहां लंकापति ने तुमको हरा और अपना काज किया इस बनमें चार मुनिको हमने परणा करायाथा इसके मध्य यह सुन्दर नदी है और हे सुलोचने यह वंशस्थल पर्वत जहां देश भूषण कुलभूषण का दर्शन किया उसी समय मुनोंको केवल उपजा और हे सौभाग्यवती कल्याणरूपिणि यह बालखिल्य का नगर जहां लक्ष्मण ने कल्याणमाला पाई और यह दशांग नगर जहां रूपवतीका पिता वज्रक परम श्रावक राज्य करे फिर जानकी पृथिवी पतिको पूछती भई हे कान्ते यह नगरी कौन जहां विमान समान घर इन्द्रपुरी से अधिक शोभा अबतक यह पुरी मैंने कभी भी न देखी ऐसे जानकी के वचन सुन जानकी
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