Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म। अपने पुत्र को राज्यभार सौंप श्राप श्रावकके व्रत धारे अाठ ग्राम पुत्र पैले संतोष घरा शरीर तज देव लोक पुराण गया वहां से चय कर तू श्रीवर्द्धित भया, अब तेरी माता के भव सुन एक विदेशी क्षुधा कर पीडित
ग्राम में प्राय भोजन मांगता भया सो जब भोजन न मिला तब महा कोपकर कहता भया कि में तुम्हारा ग्राम वालंगा असे कटक शब्द कह निकसा दैवयोगसे ग्राममें आगलगी सो ग्राम के लोगों ने जानी इस ने लगाई तब क्रोधायमान होय दौंडे और उस ल्याय अग्नि में जराया सो महा दुःखकर राजा की रसोवणि भई मर कर नरक विषे घोरवेदना पाई वहां से निकस तेरी माता मित्र यशा भई और पोदनापुर विषे एक गोवाणिज गृहस्थ मर कर तेरी स्त्री का भाई सहचन्द्र भया
और वह भुजपत्रा उस को रे रतिवर्धनी भई पूर्व जन्म विपे पशुओं पै वोझ लादे थे सो इस भव विषे भारवहे, ये सर्व के पूर्व जन्म कह कर मय महा मुनिअाकाश मार्ग विहार करगए और पोदनापुरका राजा श्रीवर्धित सिंहचन्द्र सहित नगर में गया, गौतमस्वामी कहे हैं हे श्रोणिक यह संसार की विचित्र गति है कोईयक तो निर्धन से राजा हो जाय और कोई यक राजा से निर्धन हो जाय है श्रीवर्धित ब्राह्मण कापुत्र सा राजा होयगया और सिंहचन्द्रराजाका पुत्रसो राज्य भ्रष्ट होय श्रीवर्धित के समीप आया एक गुरुके निकट प्राणी धर्मका श्रवण करे तिन में कोई समाधि मरणकर सुगति पावे कोई कुमरण कर दुर्गति पावे कोई रत्नों के भरे जहाज सहित समुद्र उलंघ सुखसे स्थानक पहुंचे कोई समुद्र में डूबे किसी को चोर लूट लेय जावें ऐसा जगत्का स्वरूप विचित्र गति जान जे विवेकी हैं वे दया दान विनय वैराग्य जप तप इन्द्रियों का निरोध शांतता अात्मध्यान तथा शास्त्राध्ययनकरात्म कल्याण करे ऐसे मय मुनिके
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