Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराख
८०८
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का धारक मुनि भया यह कथा सुन राजा श्रेणिक गौतमस्वामीको पूछतेभए हे नाथ में इन्द्रजीतादिक का महात्म्य सब सुना अब राजा मयका महात्म्य सुना चाहूं हूं और हे प्रभो जो इस पृथिवी में पतिव्रता शीलवती स्त्री हैं निज भरतारमें अनुरक्तहें वे निश्चयसे स्वर्ग मोक्षकी अधिकारिणो हैं तिनकी महिमा मुझे विस्तार से कहो, तब गणधर कहते भए जे निश्चयकर सीता समान पतित्रता शीलको धारण करे वे चल्प भव में मोक्ष होय हैं, पतिव्रता स्वर्गही जाय परम्पराय मोक्ष पावें, अनेक गुणोंकर पूर्ण । हे राजन् जे मन वचन काय करशीलवन्ती हैं चित्तकी वृत्ति जिन्होंने रोकी है वे धन्य हैं घोड़ों में हाथियों में लोहेन में पाषाण में वस्त्रों में काष्ठो में जल में वृक्षोंमें बेलों में स्त्रियों में पुरुषों में बड़ा अन्तर है सबही नारियों में पतिव्रता न पाइये और सबही पुरुषों मेंविवेकी नहीं जे शील रूप अंकुश कर मन रूप माते हाथी को वश करें वे पतिव्रता हैं पतिव्रता सवही कुलमें होय हैं और वृथा पतित्रताका अभिमान कीया तो क्या जे जिन धर्मसे वहिरमुख हैं वे मन रूप माते हाथीको वश करने समर्थ नहीं वीतराग की बाणीकर निर्मल या है चित्त जिनका वेई मनरूप हस्तीको विवेक रूप अंकुश से वशीभूत कर दया शील के मार्ग में चलायवे समर्थ हैं । हे श्रेणिक एक अभिमाना नाम स्त्री उसकी संक्षेपसे कथा कहिए है सो सुन यह प्राचीन कथा प्रसिद्ध है एक ध्यानग्रामनामो ग्राम वहां नोदन नामा ब्राह्मण उसके अभिमाना नाम स्त्री सो अग्निनामा ब्राह्मणकी पुत्री माननी नाम माता के उदर में उपजी सो थति अभिमान की धरण हारी सो नोदन नामा ब्राह्मण चुधाकर पीड़ित होय अभिमाना को तजदई सो गज बन में करूरूह नाम राजाको प्राप्त भई, वह राजा पुष्प प्रकीर्ण नगरका स्वामी लंपट मो ब्राह्मणी को रूपवन्ती जान
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