Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण .७६८॥
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अथानन्तर सीता के मिलाप रूप सूर्य के उदय कर फल गया है मुख कमल जिनका ऐसे जो राम सो अपने हाथ कर सीता का हाथ गह उठे ऐरावत गज समान जो गज उस पर सीता सहित आगे हण किया मेव समान वह गज उस की पीठ पर जानली रूप रोहिणी कर युक्त राम रूप चन्द्रमासोहते भए समाधान रूप है बुद्धि जिनकी दोनों अतिप्रीति के भरे प्राणीटं के समूहको भानंदके करता बड़े बडे अनुरागी विद्याधर लार लक्षमण लार स्वर्ग विमान तुल्य रावण का महल वहाँ श्रीराम पधारे रावणके महिल के मध्य श्रीशांतिनाथ का मंदिर अति सुन्दर जहां स्वर्ण के हजारों थंभ नाना प्रकार के रत्नोंकर मंडित मंदिर की मनोहर भीति जैसे महाविदेह केमध्य सुमेरु सोहे तैसे रावण के मंदिर में शांतिनाथ का मंदिर सोहे जिसको देख नेत्र मोहित होय जांय जहां घंटा बाजे हैं ध्वजा फरहरे हैं महा मनोहर वह शांतिनाथ का मन्दिर बरणन में न आवे श्रीराम हाथी से उतर नागेंद्र समान है पराक्रम जिनका प्रसन्न हैं नेत्र महालक्ष्मीवान जानकी सहित किंचित्काल कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञाकरी प्रलंबित, भुजा जिनकी महा प्रशांत हृदय सामायिक को अंगीकार कर हाथ जोड़ शांतिनाथ स्वामी का स्तोत्र समस्त अशुभ कर्म का नाशक पढ़ते भए हे प्रभो तुम्हारे गर्भावतार में सर्वलोक में शांति भई महा कांति की करणहारी सर्वरोग हरणहारी और सकल जीवन को आनन्द उपजे और तुम्हारे जन्मकल्याणकमें इन्द्रादिक देव महा हर्षित होय पाए क्षीर सागर के जल कर सुमेरु पर्वत पर तुम्हारा जन्माभिषेक भया और तुमने चक्रवती पद घर जगत् का राज्य किया वाह्यशत्रु वाह्यचक्रसे जीते और मुनि होय माहिले मोह रोगादिक शत्रु ध्यानकर जीते केवल बोध लहा जन्म जरा मरणसे रहित जो शिवपुर कहिये मोक्ष उसकातुम
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