Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुरावा
1890
मिलाप कर दोनोंही अति सोहते भये देवोंके युगुल समान हैं जैसे देव देवांगना सोहैं तैसे सोहतेभये सीता
और रामका समागम देख देव प्रसन्न भये सो अाकाशसे दोनों पर पुष्पों की वर्षा करते भये सुगंध जलकी वर्षा करतेभएऔरऐसेवचनमुखसे उचारतेभएअहो अनुपम है शील सीताका शभहै चित्त सीता धन्यहै इस की अचलता गंभीरता धन्य है व्रत शील की मनोग्यता भी धन्य है निर्मलपन जिस का धन्य है सतियों में उत्कृष्टता की जाने मन कर भी द्वितीय पुरुष न इच्छाशद्ध है नियम व्रत जिसका इस भांति देवोंने प्रशंसा करी उसही समय अतिभक्ति का भरा लक्षमण प्रायसीता केपायन पड़ा विनय कर संयुक्त सीता अश्रुपात डारती ताहि उरसों लगाय कहती भई हे वत्स महा ज्ञानी मुनि कहते जो यह बासुदेव पद का धारक है सो त प्रकट भया और अर्धचक्री पद का राज तेरे पाया निरन्थ के वचन अन्यथा न होय
और यह तेरे बड़े भाई बलदेव पुरुषोत्तम जिन्होंने विरह रूप अग्नि में जरती जो में सोनिकासी फिर चंद्रमा समान है ज्योति जिसकी ऐसा भाई भामंडल बहिन के समीप आया उसे देख अतिमोह कर मिली कैसा है भाई महा विनयवान है और सुग्रीव वा हनूमान् नल नील अंगद विराधित चंद्र सुषेण जांचव इत्यादि बड़े बड़े विद्याधर अपनानाम सुनायवंदना औरस्तुतिकरतेभएनाना प्रकारकेवस्त्राभूषण कल्पवृक्षोंकेपुष्पों की माला सीता के चरण के समीप स्वर्ण के पात्र में मेल भेट करते भए और स्तुति करते भए हे देवि तुम तीनलोक विषे प्रसिद्ध हो महो उदारता को धरो हो गुण संपदा कर सब में बड़े हो देवों कर स्तुति करने योग्य हो और मंगल रूप है दर्शन तुम्हारा जैसे सूर्य की प्रभा सूर्य सहित प्रकाश करे तैसे तुम श्रीरामचन्द्र सहित जयवन्त होवो ॥
वन्नासीवां पर्व समपूर्णम् ॥
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