Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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करती भई श्रीराम के शब्द महा दुन्दुभी समान और जानकी महामिष्ट कोमल बीए समान बोलती भई और विराल्या सहित लक्ष्मण स्तुति करते भए, और भामण्डल सुग्रीव तथा हनूमान मंगलस्तोत्र पढ़ते भए जोड़े हैं कर कमल जिन्होंने और जिनराजमें पूर्ण है भक्ति जिनकी महा गान करते मृदंगादि बजावते महा ध्वनि करते भए मयूर मेघकी ध्वनि जान नृत्य करते भए बारम्बार स्तुति प्रणाम कर जिनमन्दिर में यथायोग्य तिष्ठे उससमान राजा विभीषण अपने दादा सुमाली और तिनके लघुवीर माल्यवान् और सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा रावणके पिता तिनको यदि दे अपने बड़े तिनका समाधान करता भया, कैसा है विभीषण संसार ताके उपदेश में अत्यन्त प्रवीण सो बड़ों को कहता भया हे तात यह सकल जीव अपने उपार्जे कर्मों को भोगे हैं इसलिये शोक करना वृथा है और अपना चित्त समाधान करो आप जिन आगम के वेत्ता महा शांतचित्त और विचक्षणहो औरों को उपदेश देयवे योग्य आपको हम क्या कहें जो प्राणी उपजा है सो अवश्यमरणको प्राप्तहोय है औरयौवन पुष्पोंकी सुगंधतासमानक्षणमात्रमें और रूपहोय है और लक्ष्मी पल्लवकी शोभासमानशीघ्रही और रूप होय है औरविजुरीके चमत्कारसमानयह जीतव्य है औौरपानी के बुदबुदासमान बंधूका समागम है और सांझकेबादर के रंगसमान यह भोग हैं जो यहजी व परमार्थकनय करमरण न करतो हमभवांतरसे तुम्हारेवंश में कैसे यावते हे तातयपनाही शरीरविनाशीकहैतोहितुजन का अत्यंत शोक काहे को करिए शोक करना मूढ़ता है सत्यपुरुषों को शोक से दूर करिबे अर्थ संसारका स्वरूप विचारणा योग्य है, देखे सुने अनुभव जे पदार्थ वे उत्तम पुरुषों को शोक उपजावे हैं परन्तु विशेष शोक न करना क्षणमात्र भया तो भया इस शोककर बांधवका मिलापनहीं बुद्धिभ्रष्ट होय है इसलियेशोक न करना
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