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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुरागा 19९४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को धरे लंका प्रवेश करते भए तिनको देख लोक अति हर्षित भए जन्मान्तरके धर्म के फल प्रत्यक्ष देखते भए राजमार्ग में जाते श्रीराम लक्षमण तिनको देख नगरके नर और नारियों को अपूर्व आनंद भया फूल रहे हैं मुख जिनके स्त्री झरोखावों में बैठी जालियों में होय देखे हैं कमल समान हैं मुख जिन के महाकौतुक कर युक्त परस्पर बार्ता करे हैं हे सखी देखो यह राम राजादशरथ का पुत्रगुणरूप रनों की राशि पूर्णमासीके चन्द्रमा समान है वदन जिसका कमल समान हैं नेत्र जिसके अद्भुत पुण्यकर यह पद पाया है प्रतिप्रशंसा योग्य है श्राकार जिनका धन्य हैं वह कन्या जिन्होंने ऐसे बर पाए जाने यहबर पाए उसने कीर्तिका थंभ लोक विषे थापा जिसने जन्मान्तरमें धर्म श्राचरा होय सोही ऐसा नाथ पांवे उससमान और नारी कौन जिसका यश अत्यन्त राजा जनककी पुत्री महाकल्याण रूपणी जन्मांतर में महा पुण्यं उपाजें हैं इसलिये ऐसे पति जैसे शची इंद्र के तैसे सीता रामके और यह लक्षमण बासुदेव चक्रपाणि शोभे है जिसने सुरेन्द्रसमान रावण रणमेहता नीलकमलसमान कांतिजिसकी और गौर कांतिकर संयुक्त जो बलदेव श्रीरामचन्द्र तिनसहित ऐसे सोहे जैसे प्रयाग विषे गंगा यमुना के प्रवाहका मिलाप सो है। और यह राजा चन्द्रोदय का पुत्र विराधित है जिसने लक्षमण से प्रथम मिलापकर विस्तीर्ण विभूति पाई और यह राजा सुग्रीव किहकंधापुर का धनी महा पराक्रमी जिसने श्रीराम देव से परम प्रीति जनाई और यह सीताका भाई भामंडल राजा जनक का पुत्र चन्द्रगति विद्याधरने पाला सो विद्याधरों का इंद्र है और यह अंगदकुमार राजा सुग्रीवका पुत्र जो रावणको बहुरूपिणी विद्या साधते विघ्न का उद्यमी भया और हे सखि यह हनूमान महासुन्दर उतंग हाथियों के रथ चढा पवनकर हाले है बानर के चिन्ह For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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