Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प पुराण 19c९॥
स्नान कराए जन्म कल्यानक का उत्सव कर प्रभुको माता पिताको सोंप वहां उत्सव सहित तांडव नृत्य कर प्रभुकी बारम्बार स्तुति करते भये कैसे हैं प्रभु बाल अवस्था को धरे हैं परन्तु बाल अवस्थाकी अज्ञान चेष्टा से रहित हैं वहां जन्म कल्याणकका समय साधकर सब देव लंकामें अनन्तवीर्य केवलीके दर्शनको श्राए कैएक विमान चढ़े आए कैएक राजहंसों पर चढ़ पाए और कई एक अश्व सिंह व्याघादिक अनेक वाहनों पर चढ़े आये ढोल मृदंग नगारे वीण बांसुरी झांझ मंजीरे शंख इत्यादि नाना प्रकार के वादित्र बजावते मनोहर गान करते श्राकोश मंडल को पालादते केवलो के निकट महा भक्तिरूप अर्घ रात्रि के समय आये तिनकी विमानोंकी ज्योति कर प्रकाश होय गया और वादित्रों के शब्दकर दशों दिशाव्याप्त होय गईं राम लक्षमण यह वृत्तान्त जान हर्ष को प्राप्त. भंये समस्त बानरवंशी और राक्षस बंशी विद्याधर इन्द्रजीत कुम्भकर्ण मेघनाद आदि सर्व रामलक्षमणके संग केवलीके दर्शनके लिये जायचे को उद्यमी भये श्रीराम लक्षमण हाथी चढ़े और कईएक राजा रथपर चढ़े कईएक तुरंगोंपर चढे छत्रचमर ध्वजाकर शोभायमान महा भक्ति कर संयुक्त देवों सारिखे महा सुगन्धहैं शरीर जिनके अति उदार अपने बाहनों से उतर महा भक्ति कर प्रणाम करते स्रोत्र पाठ पढ़ते केवली के निकट आये अष्टांग दरडवत कर भूमि में तिष्ठे धर्म श्रवणकी है अभिलाषा जिनके केवली के मुखसे धर्म श्रवण करत भये दिव्य ध्वनि में.
यह कथनभया कि ये प्राणी अष्ट कर्म से बंधे महा दुख के कर्म पर चढ़े चतुर्गति में भ्रमण ण करे हैं मार्गः। | रोद्र ध्यान कर युक्त नाना प्रकार के शुभाशुभ कर्मोंको घरे हैं महा मोहिनी कर्मने ये जीव. बुद्धि. रहित । किये इसलिये सदा हिंसा करे हैं असत्य वचन कहे हैं पराये मर्मबेदका वचन कहे हैं परनिन्दा करे हैं पर ।
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