Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
प्रजाके बाधक दुष्ट भूपति वहिरंगशत्रु कहिये इसभान्ति राजाने कही तब राणी अति हर्षित होय अपने स्थानक गई मन्द मुलकन रूप जो केश उनसे संयुक्त है मुख कमल जिसका और गणी केकई पति सहित श्री जिनेन्द्र के जे चैत्यालय तिनमें भाव सयुक्त महा पूजा करावतीभई सो भगवानकी पूजाके -प्रभाव से राजाका सर्व उद्वेग मिटा चित्तमें महा शान्ति होतीभई। .
____ अथानन्तर राणी कौशल्या के श्रीरामका जन्म भया राजा दशस्य ने महा उत्सव किया छत्र। चमर सिंहासन टार बहुत द्रव्य यात्रकों को दिये उगते सूर्य समान है वर्ण रोम का कमल समान हैं नेत्र
और लक्ष्मी से आलिंगित है वक्षस्थल जिसका इसलिये माता पिता सर्व कुटम्बने इनका नाम पद्मपरा 1 फिर राणी सुमित्रा अति सुन्दर है रूप जिसका सो महा शुभ स्वप्न अवलोकन कर आश्चर्यको प्राप्त । होती भई वे स्वप्न कैसे सो सुनो एक बड़ा केहरी सिंहदेखा लक्ष्मी और कीर्ति बहुत आदरसे सुन्दरजल | के भरे कलश कमलसे ढके उनसे स्नान करावे हैं और श्राप सुमित्रा बड़े पहाड़ के मस्तक पर बैठी। है और समुद्र परयन्त पृथिवी को देखे है और देदीप्यमानहें किरणोंके समूह जिसके ऐसा जो सूर्य सो देखा और नाना प्रकारके रत्नों से मण्डित चक्र देखा ये स्वप्न देख प्रभातके मंगलीक शब्दभए तबसेजसे उठकर प्रातक्रियाकर बहुत बिनय संयुक्त पतिके समीपजाय मिष्टबानीसे स्वप्नोंका वृत्तान्तकहती भई तब राजाने कही हे वरानने कहिये सुन्दर है वदन जिसका तेरे पृथिवीपर प्रसिद्धपुत्रहोयगा शत्रुवोंके समूह
का नाश करनहारा महातेजस्वी आश्चर्यकारी है चेष्टा जिसकी ऐसा पतिने कहा तब वह पतिव्रता हर्षसे | भराहै चित्त जिसका अपने अस्थानकको गई सर्वलोकोंको अपने सेवक जानतीभई फिरइसके परमज्योति
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