Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
को चितार इस भांतिके वचन कहकर रुदनकरे कि में चक्रवर्तीके तो जन्मपाया और पूर्व जन्मके पापकर बनमें ऐसी दुख अवस्थाको प्राप्तभई इस भांति प्रांसुवोंकी वर्षा कर चतुर्मासिक किया और जे वृक्षोंसे टूटे फल सूक जांय तिनका भक्षणकरे और बेला तेला श्रादि अनेक उपवासोंसे क्षीण होय गया है शरीर जिसका सो केवल फल और जलसे पारणा करतीभई और एकही बार जल उसही समय फल यह चक्रवर्तीकी पुत्री पुष्पोंकी सेजपर सोवती और अपने केशभी जिसको चुभते सो विषम भूमिपर खेद सहित शयन करतीभई और पिताके अनेक गुणीजन रागकरते तिनके शब्द सुन प्रबोधको पावती सो अब स्याल आदि अनेक बनजरोंके भयानक शब्दसे रात्रि म्यतीत करती भई इसभांति तीन हजार वर्ष तप किया सूके फल तथा सूके पत्र और पवित्रजल आहार किये और महावैराग्यको प्राप्त होय खान पानका त्यागकर धीरता घर संलेषण मरण प्रारम्भा एक सौ हाथ भूमि पांवों से परे न जाऊं यह नियम धार तिष्ठी, आयु में छह दिन बाकी थे और एक अरहदास नामा विद्याधर सुमेरु की वन्दना कर के जावे था सो आय निकसा सो चक्रवर्ती की पुत्रीको देख पिताके स्थानक लेजाना विचारा संलेषणा केयोग से कन्याने मने किया तब अरहदास शीघ्र ही चक्रवर्ती पर जाय चक्रवर्ती को लेय कन्या पै आयो सो जिस समय चक्रवती पाया उस समय एक स्थूल अजगर कन्या को भखेथा सो कन्याने पिताको देख अजगरको अभयदान दिवायो और आपसमाधि धारण कर शरीर तज तीजे स्वर्ग गई पिता पुत्रीकी यह
अवस्था देखकर बाईस हजार पुत्रों सहित पैराग्यको प्राप्तहोय मुनि भया, कन्याने अजगरसे क्षमाकर अजगर | को पीड़ा न होने दई सो ऐसी दृढ़ता उमही से बने और वह पुनर्वसु विद्याधर अनंगसरा को देखता भया
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