Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पभ परागत i७३०
कहियो त ऐसे मढ़ मंत्रियोंका बहकाया खोटे उपायकर आपा ठगावेगा तू अपनी बुद्धिकर विचार किसी कुबुद्धिको पूछे मत सीताका प्रसंग तज सर्व पृथिवीका इन्द्र हो पुष्पक विमान में बैठा जैसे भ्रमे था तैसे विभव सहित भ्रमायह मिथ्या हठ छोड़ देशद्रोंकी बात मत सुनों करने योग कार्यमें चित्तधर जो सुखकी प्राप्ति होय ये वचन कह श्रीराम तो चुप होय रहे और और पुरुषोने दूतको फिर बात न करनेदई निकाल दीया दूत रोम के अनुचरों ने तीशण बाण रूप बचनों से बींधा और अति निरादर किया तब रावणके निकट गया मन में पीड़ा थका सो रावण सों कहताभया हे नाथ मैं तुम्हारे आदेश प्रमाण रामसों कहा जो या पृथिवी नाना देशों से पूर्ण समुद्रांत महा रत्नोंकी भरी विद्याधरोंके समस्त पट्टन सहित में तुमको दूंहूं और बड़े २ हाथा रथ तुरंग दृहूं और यह पुष्पक विमान लेवो जो देवोंसे न निवारा जाय इसमें बैठ विचरो और तीन हजार कन्या में अपने परवार की तुमको परणाय द और सिंहासन सूर्य समान
और चन्द्रमा समान छत्र वेलेह और निःकंटक राज करो एती बात मुझे प्रमाण हैं जो तुम्हारी प्राज्ञा कर सीता मोहि इच्छे यह धरा और राज लेवो और में अल्प विभूति राख बैंतही के सिंहासन पर बैठा रहूंगा विचक्षण हैं तो एक वचन मेरा मान सीता मोहि देवो एकचन में बार वार कहे सो रघुनन्दनसीता का हठ न छोड़े केवल उसके सीताका अनुरागहै और वस्तुकी इच्छा नहीं हे देव जैसे मुनि महा शांत चित्त अठाईस मूल गुणों की क्रिया न तजे वह क्रिया मुनिव्रतका मलहें तैसे राम सीताको न तजें सीता ही रामके सर्वस्व है कैसी है त्रैलोक्यमें ऐसी सुन्दरी नहीं और रामने तुमसे यह कही है कि हे दशानन ऐसे सर्वलोक निंद्य वचन तुमसे पुरुषों को कहना योग्य नहीं ऐसे वचन पापी कहे हैं उनकी जीभ के सौ
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