Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥७२।
बृथाहै जोतुम युद्ध करोगे तो न जानकीका नतिहारा जीवन इसलियेदोनोंमत खोवो सीता का हठ छोड़ो और पुराण | रावण ने यह कही है जे बड़े बड़े राजा विद्याधर इन्द्र तुल्य पराक्रम जिन के सो समस्त शस्त्र विष प्रवीण
अनेक युद्धों के जीतन हारे वे मैं नाश को प्राप्तकिए, तिनके कैलाशपर्वतके शिखर हाड़न के समूह देखो जब ऐसा दूतने कहा तबभामण्डल क्रोधायमान भया ज्वाला समान महा विकराल मुख उसकी ज्योतिसे प्रकाश किया है आकोश विषय जिसने भामण्डलने कही रे पापी दूत स्याल चातुयंता रहित दुद्धि बृथा शंका रहित क्या भाषे है सीता की क्या वार्ता सीता तो राम लेहींगे यदि श्रीराम कोपे तब रावण राक्षस कुचेष्टित पशु कहां ऐसा कह उसके मारबे को खड्ग सम्हारा तव लक्षमणने हाथ पकड़े और मनेकिया कैसे हैं लक्षमण नीतिही है नेत्रजिनके भामण्डल के क्रोधसे रक्तनेत्र होयगए वक्रहोय गए जैसी सांझ की लाली होय तैसा लालबदन होयगया तब मन्त्रियोंने योग उपदेश कह समता को प्राप्त किया जैसे विषका भरा सप मन्त्रसे वश कीजे है, हे नरेन्द्र क्रोध तजा यह दीन तुम्हारे क्रोध योग्य नहीं यह तो पराया किंकर है जो वह कहावे सो कहे इसके मारने से क्या स्त्री, बालक, दूत, पशु, पक्षी, प्रद्ध, रोगी, सोता,
आयुध रहित, शरणागत, तपस्वी गाय, ये सर्वथा अवध्य हैं जैसे सिंह कारी घटो समान गाजते गज तिनका मर्दन करने हारा सो मींडकों पर कोप न करे तैसे तुमसे नृपति दूतपर कोप न करें यहतो उसके शब्दानुसार है जैसे (छाया पुरुष है छाया पुरुषकी अनुगामिनीहै) और सूवाको ज्यों पढ़ावे तैसे पढ़े और । यंत्र को ज्यों बजावें त्यों बजे तैसे यह दीन वह बकावे त्यों बके ऐसे शब्द लक्षमण ने कहे तब सीता का भाई भामण्डल शांतचित्तभया श्रीराम दूतको प्रकटकहतेभए रे मूढ़दूत तू शीघहीजा और रोवणको ऐसे |
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