Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
६
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कर उड़ जाती भई जैसे दुष्टनारी चलायमान हैं नेत्र जिसके पातिके समपिसे जाती रहे, जीवों के शुभा शुभ प्रकृति का उदय युद्धविषे लखिये है दोनों बराबर और कोई की हार होय कोई की जीत होय और कहूंकल्प सेना का स्वामी महा सेनाके स्वामी को जीते और कोई एक सुकृत के सामर्थ से बहुतों को जीते और कोई बहुत भी पाप के उदयसे हार जाय जिन जीवोंने पूर्व भवमें तप किया वे राज्य के अधिकारी होय विजयको पावें हैं और जिन्होंने तपन किया श्रथवा तप भंग किया तिनकी हार होय है, गौतमस्वामी राजाश्रेणिक से कहे हैं हे श्रेणिक यह धर्म मर्म की रक्षा करें है और दुर्जयको जीते है धर्मही भड़ा सहाई है बड़ा पक्ष धर्मका धर्म सत्र ठौर रक्षा करे है घोड़ों कर युक्त रथ पर्वत समान हाथी पवन समान तुरंग असुर कुमार से पयादे इत्यादि सामग्री पूर्ण हैं परन्तु पूर्वपुण्य के उदय बिना कोई राखवे समर्थ नहीं एक पुण्याधिकारीही शत्रुवों को जीते है, इस भांति राम रावण के युद्धकी प्रवृत्त में योधावों कर योधा हते गए तिनकर र खेत भर गया अवकाश नहीं चायुधों कर योधा उछले हैं। परे हैं सो आकाश ऐसा दृष्टि पड़ता भया मानों उत्पात के बादलों कर मंडित है ॥
ह
अथानन्तर मारीच चन्द्रनिकर बज्रात शुकसारण और भी राक्षसोंके अधीश तिन्होंने रामका कटक दबाया तब हनूमान चन्द्रमारीच नील कुमुद भूत स्वन इत्यादि रामपक्ष के योधा तिन्होंने राक्षसों की सेना दवाई तब रावण के योधा कुन्द कुम्भनिकुम्भ विक्रम क्रमाण जंबूमाली काकवली सूर्यार मकरध्वज शनिरथ इत्यादि राक्षसों के बड़े २ राजा शीघ्र ही युद्धको उठे तब भूधर अंचल सम्मेद निकाल कुटिल अंगद सुखे कालचन्द्र उर्मितरंग इत्यादि बानवंशी योथा तिनके सन्मुख भए उनही समान उस समय कोई सुभटप्रति पक्षी
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