Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पमा सुभट विनादृष्टि न पड़ा भावार्थ-दोनोंपक्षके योधा परस्पर महायुद्धकरतेभए और अंजनीका पुत्र हाथियोंके स्थ UST परचढ़कर रणमें क्रीड़ा करता भया जैसे कमलोंकर भरे सरोवर में महा गज क्रीडाकरेगौतम गणधर कहे हैं हे
श्रेणिक उस हनुमान शूरवीर ने राक्षसों की बड़ी सेना चलायमान करी उसे रुचा जो किया तब राजा मय विद्याधर दैत्य बंशी मन्दोदरी का बाप क्रोधके प्रसंगकर लाल हैं नेत्र जिसके सो हनूमान के सन्मुख
आया तब वह हनुमान कमल समोन हैं नेत्र जिसके बाण बृष्टि करताभया सो मयका रथ चकचर किया तब बह दूजे स्थ चढ़कर युद्धको उद्यमी भया तब हनमान ने फिर स्थ तोड़ डाला तब मय को विहलदेख रोवणने बहुरूपिणी विद्या कर प्रज्वलितोत्तमरथ शीघही भेजा सो राजा मय ने उस स्थ में चढ़ कर हनु मान से युद्धकिया और हनुमान का रथ तोड़ा तब हनमान को दबा देख भामंडल मदद आया सो मयने बाण वर्षाकर भामंडल का भी रथ तोड़ा तब राजो सुग्रीव इनके मदद पाए सो मयने उसक शस्त्र रहित किया और भूमि में डारा तब इनकी मदद विभीषण अाया सो विभीषण के और मय के अत्यन्त युद्ध भया परस्पर बाण चले सो मयने विभीषण का बषतर तोड़ डारा सो अशोक वृक्ष के पुष्प समान लाल होय तैसी लाल रूप रुधिर की धारा विभीषणके पड़ी तब बानर बंशियों की सेना चलायमान भई और राम युद्ध को उद्यमी भए विद्यामई सिंहों के रथ चढे शीघही मय पर आए और बानर बंशियों को कहते भए तुम भय मत करो रावण की सेना विजुरी सहित कारी घटा समान उस में उगते सूर्य समान श्रीराम प्रवेश करते भए और पर सेनाका विध्वंस करनेको उद्यमी भए तब हनुमान भामंडल सुग्रीव विभीषण को धीर्य उपजा और बानरबंशियों की सेना यद्ध करनेको उद्यमी भई रामका बल पाय |
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