Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
11999:1
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अथानन्तर लक्षमण के हाथ में महासुन्दर चक्ररत्न श्राया देख सुग्रीव भामंडलादि विद्याधरों के पतिति हर्षित भए और परस्पर कहते भये यागे भगवान अनन्तवीर्य केवली ने श्राज्ञा करी थी जो लक्षमण आठवां वासुदेव है और राम आठवां वलदेव है सो यह महा ज्योति चक्रपाणि भया अति उत्तम शरीर का धारक इस के बलका कौन वर्णन करसके, और यह श्रीराम वलदेव जिसके रथको महो तेजवन्त सिंह चलावें जिसने राजामय को पकड़ा और हल मूसल महा रत्न देदीप्यमान जिसके करमें सोहें ये बलभद्र नारायण दोनों भाई पुरुषोत्तम प्रकट भये पुण्य के प्रभाव कर परमप्रेमके भरे लक्षमण के हाथमें सुदर्शन चक्रको देख राक्षसोंका अधिपति चित्तमें चितारे है कि भगवान श्रनन्तवीर्यने आज्ञाकरी थी सोई भई निश्चय सेती कर्मरूप पवन का प्रेरा यह समय आया, जिसका छत्र देख विद्याधर डरते और महासेना पर की भागजाती पर सेनाकी ध्वजा और छत्र मेरे प्रतापसे बहे बहे फिरते और हिमाचल विन्ध्याचल हैं स्तन जिसके समुद्र हैं वस्त्रजिसके ऐसी यह पृथिवी मेरी दासी समान श्राज्ञाकारिणी थी ऐसा मैं रावण सोरण में भूमिगोचरियों ने जीता, यह अद्भुत बात है कष्टकी अवस्था या प्राप्त भई, धिकार इस राज्य लक्ष्मी को कुलटा स्त्री समान है चेष्टा जिसकी पूज्य पुरुष इस पापनी को तत्काल तजें यह इन्द्रीयों के भोग इन्द्रायण के फल समान इनका परिपाक विरस है अनन्त दुःख सम्बन्ध के कारण साधुवों कर निन्द्यहैं त्याज्य हैं पृथिवी में उत्तम पुरुष भरत चक्रवत्र्त्यादि भये वे धन्य हैं जिन्होंने निः कंटक छह खंड पृथिवीका राज्य किया और विष के मिले अन्नकी न्याई राज्यको तज जिनेन्द्रवत धारे रत्नत्रय को आराधन कर परम पद को प्राप्त भए मैं रंक विषियाभिलाषी मोह बलवान ने मुझें
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