Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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1990
पद्म तेरी शक्ति है तो प्रहार कर ऐसा कहा तब वह महा कोधायमान होय दांतों कर डसे हैं होंट जिसने लाल
हैं नेत्र जिसके चकको फेर लक्षमण पर चलाया कैसा है चक मेघ मंडल समान है शब्द जिसका और महा शीघ्रता को लिये प्रलयका- के सर्य समान मनुष्यों को जीतव्य के संशय का कारण उसे सन्मुख
आवता देख लक्षमण वजमई है मुख जिनका ऐसे बाणों कर चक्रके निवारिवेको उद्यमी भया और श्री राम वज्रावर्त धनुष चढ़ाय अमोघ बाणोंकर चक्रके निवारिखको उद्यमीभए और हल मूशलनको भ्रमावते
चक्रके सन्मुख भए और सुग्रीव गदाको फिराय चक्र के सन्मुखमए और भामंडल खड्ग को लेकर निवा| खेिको, उद्यमी भा और विभीषण त्रिशूल ले आढे भए और हनुमान जलका मुद्गर लांगल कनकादि | लेकर उद्यमी भए. और अंगद पारद नामा शस्त्र लेकर ठाढ़े भए और अंगदका भाई अंगकुठार लेकर महा तेज़ रूप खड़े और भी दूसरे श्रेष्ठ विद्याधर अनेक प्रायुधों कर युक्त सब एक होय कर जीवने को अाशा तज चक्र के निवारिख को उधमी भए परन्तु चकको निवार न सके कैसा है चक देवकरे हैं सेवा जिसकी उसने प्रायकर लक्ष्मणकी तीन प्रदक्षिणा देय अपना स्वरूप विनय रूप कर लक्षमण के कर में तिष्ठा, सुखदाई शान्त है प्राकार जिसका । यह कथा गौतम स्वामी राजा श्रेणिक से कहे है हे मगधाधिपति राम लक्षमणका महाऋद्धिको धरे यह महात्म्य तुझे संक्षेप से कहा कैसाहै इनका महात्म्य जिसे सुने परम आश्चर्य उपजे और लोकमें श्रेष्ठ है के एक के पुण्य के उदय कर परम विभूति होय है और कैएक पुण्यके क्षयकर नाश होय हे जैसे सर्य का अस्त होय है चन्द्रमा का उदय होय है तैसे लक्षमण के पुण्यका उदय जानना ॥
॥ इति पचहत्तरवां पर्व संपूर्णम् ।।
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