Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न
पुरामा
219३।।
का धारक है सो इनको कदाचित भी अधर्म विषे प्रवृति न होयगी तव लक्ष्मण की जानमें इन विद्याघरोंने अपने कुमार उपद्रव को विदा किए और सुग्रीवादिक बड़े बडे, पुरुष आठ दिन का नियम धर तिष्ठे और पूर्णचन्द्रमा समान बदन जिनके कमल समान नेत्र नाना लक्षण के धरणहारे सिंह व्याघ्र बराह गज अष्टापद इनसे युक्त जे स्थ तिन पर बैठे तथा विमानों पर बैठे परम श्रायुधों को घरें कपियों के कुमार रावणको कोप उपजायबे का है अभिप्राय जिनके मानों यह असुरकुमार देवही हैं प्रीतंकर दृढ़रथ चन्द्राहू रतिवर्धन वातायन गुरुभार सूर्यज्योति महारथ समन्तवल नन्दन सर्वदृष्ट सिंह सर्वप्रिय नल नील सागर घोषपुत्र सहित पूर्ण चन्द्रमा स्कंध चन्द्र मारीच जांवव संकट समाधि बहुल सिंह कट इन्द्रामणि बल तुरंग सब इत्यादि अनेक कुमार तुरंगों के स्थ चढे और अन्य कैयक सिंह बाराह गज व्याघ इत्यादि मनसे भी चञ्चल बाहनों पर चढे पयादों के पटल तिनके मध्य महा तेज को घरे नाना प्रकारक चिन्ह तिनसे युक्त हैं छत्र जिनके और नाना प्रकार की ध्वजा फरहरे हैं जिनके महा गंभीर शब्द करते दशोंदिशा को
आछादित करते लंकापुरी में प्रवेश करतेभए मन में विचार करतेभए बड़ा आश्चर्य है कि लंका के लोक निश्चिन्त तिष्ठे हैं जानिये है कछ संग्राम का भय नहीं अहो लंकेश्वर का बड़ाधीर्य महागंभीरता देखो कि कुम्मकर्ण से भाई और इन्द्रजीत मेघनाद से पुत्र पकड़े गए हैं तौभी चिन्ता नहीं और अक्षादिक अनेक योधा युद्ध में हते गए हस्त प्रहस्त सेनापति मारे गए तथापि लंकपति को शंका नहीं, ऐसा चितवन करते परस्पर वार्ता करते नगर में बैठे तथा विभीषण का पुत्र सूभूषण कपिकुमारों को कहता भया तुम | भय तज लंका में प्रवेश करो बाल बृद्ध स्त्रियों को तो कुछ न कहना और सबको ब्याकुल करेंगे तब इस !
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