Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥१४॥
सोइनको देख नगरके वासियोंको अति भय उपजाघरघर में ये बात होय है भाजकर कहां जाइये ये पाए। बाहिर खड़े मत रहो भीतर पैसो हाय मात ये क्या भया, हे तात देखो, हे भ्रात हमारी रक्षा करो हे आर्य || पुत्र महाभय उपजा है ठिकाने रहो इस भांति नगरी के लोक व्याकुलता के वचन कहते भए लोक भाग रावण के महिलमें आये अपने वस्त्र हाथों में सम्हाले अति विठ्ठल बालकों को गोद में लिये स्त्री जन कांपती भागी जाय हैं कैएक गिर पड़ी सो गोडे फूट गये कैएक चली जाय हैं हार टूट गए मो बडे २ || मोती विखरे हैं जैसे मेघमाला शीघ जाय तैसे जायहै त्रासको पाइ जो हिरणी उस समानहैं नेत्र जिनके ।
और ढीले होयगये हैं केशोंके बन्ध जिनके और कोई भयकर प्रीतम के उरसे लिपट गई इस मांति लोका। को उद्धेग रूप महा भयभीत देख जिन शासन के देव श्रीशान्तिनाथ के मन्दिरके सेवक अपसे पक्षके । पालनेको उद्यमी करुणांवन्त जिन शारुनके प्रभाव करनेको उद्यमीभए महा भैरव प्राकारघरे शांतिनाथके मंदिग्से निकसे नाना भेष धरे विकरालहैं दाढ़ जिनकी भयकरहै मुख जिनका मध्यान्हके सूर्य समान । तेज हैं नेत्र जिनके होंठ डसते दीर्घ है काया जिनकी नाना वर्ण भयंकर शब्द महा विषम मेष को । धरे विकराल स्वरूप तिनको देखकर बानरवंशियों के पुत्र महा भयसे अत्यन्त विहल भए वे देव क्षम में सिंह क्षण में अग्नि क्षण में मेघ क्षण में हायी क्षण में सर्प चण में वायु चण में वृक्ष क्षमा में। पर्वत सो इनसे कपिकुमारों को पीडित देख कटकके देव मदत करतेभए देवोंमें परस्पर युद्धभया लंका के देव कटकके देवोंसे और कपिकुमार लंकाके सन्मुख भए तब यतोंके स्वामी पूर्णभद्र मणिभद्र महा क्रोध को प्राप्तभए दोनों यतेश्वर परस्पर बार्ता करते भए देखो ये निर्दई कपियोंके पुत्र महा विकार को
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