Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥७६०॥
पद्म | धनी सबही नय जाने हैं परन्तु दैव योग थकी प्रमादरूपभया होय तो जे हितु वे समझा जैसे विष्णु
कुमार स्वामी को विक्रियाऋद्धि का विस्मरण भया तो औरों के कहे कर जाना, यह पुरुष यह स्त्री ऐसा विकल्प मन्द बुद्धियोंके होय है जे बुद्धिमान हैं वे हितकारी वचन सबही का मानलेय, अापका कृपाभाव मो ऊपर है तो मैं कहूं हूं तुम पर स्त्री का प्रेम तजो में जानकी को लेकर रामपै जाऊं और राम को तुम्हारे पास ल्याऊं, और कुम्भकर्ण इन्द्रजीत मेघनाद को लाऊं अनेक जीवों की हिंसा कर क्या ऐसे वचन मन्दोदरी ने कहे तबरावण अतिक्रोधकर कहताभया शीघही जावो जावो जहांतेरा मुख नदेखू तहां जावो अहो तू श्राप को बृथा पंडित माने है आपकी ऊंचता तज परपक्ष की प्रशंसा में प्रवरती तू दीनचित्त है योधावों की माता तेरे इन्द्रजीत मेघनाद कैसे पुत्र और मेरी पटराणी राजामय की पुत्री तोमें एती कायरता कहांसे
आई ऐसाकहा तवमन्दोदरी बोली हेपतिसुनो जोज्ञानियोंके मुखबलभद्र नारायणप्रतिनारायणका जन्मसुनिये है पहिला वलभद्र विजयनारायण त्रिपृष्ठ प्रतिनारायण अश्वग्रीव, दूजा बलभद्र अचल नारायण द्विपृष्ठ प्रतिहरि तारक इसभाँति अबतक सात बलभद्र नाराकण होय चुके सो इनके शत्रु प्रतिनारायण इन्हों ने हते अब तुम्हारे समय यह बलभद्र नारायण भए हैं और तुम प्रतिवासुदेव हो आगे प्रतियासुदेव हठ कर हतेगए तैसे तुम नाश को इच्छो हो जै बुद्धिमान हैं तिनको यही कार्य करणा जो या लोक परलोक में सुखहोय और दुःख के अंकुरे की उत्पति न होयसो करनी यहजीव चिरकाल विषय से तृप्त न भया तीन
लोक में ऐसा कौन है जो विषयों से तृप्त होय तुम पाप कर मोहित भए हो सो वृथा है और उचित तो | यह है तुमने बहुतकाल भोग किए अब मुनिव्रतधरो अथवा श्रावगके व्रतधर दुखों का नाश करो अणुव्रत ।
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