Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पराया
॥७६४॥
पद्म | के चैत्यालयों में महा मनोहर गीत ध्वनि होती भई और सूय्य लोक का लोचन उदय को सन्मुख भया !
अपनी किरणों कर सर्व दिशा विषे उद्योत करता सन्ता प्रलय काल के अग्नि मण्डल समान है प्राकार जिसका प्रभात समय भया तब सब रोणी पति को छोडती उदास भई, तब रावण ने सब को दिलासा करी गम्भीर वादित्र बाजे शंखों के शब्द भए, रावण की आज्ञा कर जे युद्ध विर्ष विचक्षण हैं महाभट महा अहंकार को घरते परम उद्धत अति हर्ष के भरे नगर से निकसे तुरंग हस्तीरथों पर चढे खड्ग धनूप गदा वरछी इत्यादि अनेक आयुधोंको धरे, जिन पर चमर दुरते छत्र फिरते, महा शोभायमान देवों जैसे स्वरूप बान महा प्रतापीविद्याधरों के अधिपति योधा शीघ्र कार्य के करण हारे श्रेष्ठ ऋद्धि के धारक युद्ध का उद्यमी भए, उस दिन नगर की स्त्री कमलनयनी करुणा भाव कर दुख रूप होती भई, सोतिन को निरखे दुर्जन का चित भी दयाल होय, कोई यक सुभट घर से युद्ध को निकसा और स्त्री लार लगी आवे हैं, उसे कहता भया हे मुग्धे घर जावो हम सुख से जाय हैं और कोई एक स्त्री भरतार चले हैं तिन को पीछे से जाय कहतीभई हे कन्त तुम्हारा उत्तरासन लेवो तब पति सन्मुखहोय लेते भए कैसी हैगनयनीपतिकमुख । देखने की है लालसा जिस के और कोई एक प्राणवल्लभा पति को दृष्टि से अगोचर होते संते सखिया । सहित मर्छा खायपडी, और कोई एक पति से पाली प्राय मौन गह सेज पर पडो, मानों काठ की पूतली ही है और कोई यक शरवीर श्रावक के व्रत का धारकपीठ पीछे अपनी स्त्री को देखताभया और आगे देवांग नाओं का दखताभया। भावार्थ । जे सामन्त अणुव्रत के धारक हैंवेदेवलोक के अधिकारी हैं। और जे सामन्त पहिल पूण मासी के चन्द्रमा समान सौम्यवदन थे वें युद्ध के आगमन विषे कालसमान कराकार हाय गए सिर पर टोप धरे वक्तर पहिरे शस्त्र लीए तेज भासते भए ।।
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