Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण १४६॥
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" ध्यावे जैसे भरत जिन दीक्षा को ध्यावे सो रावण को अंगद कहता भया हे रावण कहो अब तेरी क्या बात तोसे ऐसी करूं जैसी यम न करे तैंने कहा पाखंड रोपा भगवान के सन्मुख यह पाखंड कहां धिक्कार तुझे पाप कर्मीको वृथा शुभक्रिया का आरंभ किया है ऐसा कहकर उसको उत्तरासन उतारा और इसकी राणीयों को इसके आगे कूटता भया कठोर वचन कहता भया और रावणके पास पुष्पपड़े थे सो उठाय लीये और स्वर्ण के कमलोंसे भगवान की पूजाकरी हाथमेंसे स्फटिककी माला छीन लई सो मणियां विखर गई फिर मणियें चुन माला परोय रावण के हाथ में दई फिर बिनाय लई फिर परोय गले में डाली फिर मस्तक पर मेली फिर रावण का राजलोक मोई भया, कमलों का वन उसमें ग्रीषम कर तप्तायमान जो ant हाथी उसकी न्याई प्रवेश किया और निःशंक भया राजलोक में उपद्रव करताभया जैसे चंचल घोड़ा कूदता फिरे तैसे चपलता से परिभ्रमण किया काढू के कंठ में कपड़ो को रस्सा बनाय बांधा और काहू के कण्ठ में उतरासन डोर थंभ में बांध फिर छोड़ दई काहू को पकड़ अपने मनुष्यों से कही इसे बेच यावो उसने हंसकर कही पांच दीनारों को बेच आया इस भांति अनेक चेष्टा करी काहू के कानों
घुंघुरू घाले और केशों में कटिमेखला पहिराई काह. के मस्तक का चड़ामणि उतार चरणों में पहिराया और काइको परस्पर केशों से बांधी और काढू के केशों में शब्द करते मोर बैठाये इस भांति जैसे सांड. गायों के समूह में प्रवेश करे और तिनको व्याकुल करे तैसे रावण के समीप सब राज लोकों को क्लेश उपजाया और अंगद क्रोध से रावण को कहता भया, हे अधम राक्षस तैने कपट कर सीता हरी अब हम तेरे देखते तेरी समस्त स्त्रियों को हरे हैं तो मैं शक्ति होय तो यत्न से ऐसा कह कर इसके
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