Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पा सो समाचार आएही तब सीता सब प्राचार में विचक्षण महा साधनी शीलवन्ती देशकाल की जानने
धारी आहार लेना अंगीकार करतीभई तब हनुमान ने एक ईरा नामकी स्त्री कुलपालिकाको आज्ञाकरी कि शीघही श्रेष्ठ अन्न लावो और हनूमान बिभीषणके गया उसीके भोजन किया और उससे कही सीता को भोजन की तयारी कराय आयाहूं और ईरा जहां डेरे थे वहां गई सो चार महर्त में सर्व सामग्री लेकर आई दर्पण समान पृथिवीको चन्दन से लीपा और महा सुगन्ध विस्तीर्ण निर्मल सामग्री और सुवर्णादिक के भाजन में भोजन धराय लाई कैएक पात्र घृत के भरे हैं कैएक चावलोंसे भरे हैं चावल कुन्दके पुष्प समाम उज्ज्वल और केएक पात्र दाल सो भरे हैं और अनेक रस नानाप्रकार के व्यंजन दूध दही महा स्वाद रूप भांति भांति आहार सी सीता बहुत किया संयुक्त रसोई कर ईरानादि समीप वतियोंको यहां ही न्यौते हनुमान से भाई का भाव कर अति वात्सल्य किया महा श्रद्धा संयुक्त है
अन्तःकरण जिसका ऐसी सोतामहा पतिव्रता भगवानको नमस्कारकर अपना नियम समाप्तकर विविध | पात्रों के भोजन करावने काश्रभिलाषकर महा सुन्दर श्रीराम तिनको हृदयमें धार पवित्र है अंग जिसको | दिम में शुद्ध आहार करतीभई सूर्यका उद्योत होय तबही पवित्र मनोहर पुण्यका बढ़ावन हारा आहार
योग्य है रात्रिको योग्य नहीं. सीता भोजन कर चुकी और कछु इक विश्रामको प्राप्त भई तब हनूमान ने नमस्कार कर विनती करी हे पतिव्रते हे पवित्रे हे गुण भूपणे मेरे कांधे चढ़ो और समुद्र उलंघ क्षण
मात्र में रामके निकट ले जाऊं तुम्हारे ध्यानमें तत्पर महा विभव संयुक्त जे राम तिनकी शीघही देखो | तुम्हारे-मिलापकर सवहीको मानन्दहो तब सीता रुदन करती हुई कहती भई हेमाई पतिकी प्राज्ञाविना ।
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