Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
हैसो दुराचार रूप समुद्र में काम रूप भ्रमर के मध्य आय नरक के दुःख भोगेगा हे रोवण तू रत्नश्रवा पुराण || राजांके कुल क्षय नीच पुत्र भया तुझसे राक्षस बंशियोंका क्षय होयगा अागे तेरे बंशमें बड़े बड़े मर्यादाके ॥६११॥
पालनहारे पृथिवी में पूज्य स्वर्ग मुक्तिके गमन करणहारे भए. और तू उनके कुलमें पुलाक कहिए न्यून पुरुष भया दुर्बुद्धिको मित्रको मित्रलोक सुबुद्धिकी बात कहे सो न माने इसलिये दुर्बुद्धिको कहना निरर्थक
है जब हनूमानने यह वचन कहे तब रावण क्रोधकर आरक्त होय दुईचन कहता भया यह पापी मृत्यु से । नहीं डरे है वाचालहै इसलियेशीघही इसके हाथ पांवग्रीवा साकलोंसे बांधकर और कुवचनकहते ग्राममें फेरोक्रूर किंकरखार और घर घर यह वचन कहो यहभूमिगोचरियों को दूत आयाहे इसे देखो और स्वान बालक लारसो नगरकी लुगाई धिक्कारदेवें औरबालक धूल उड़ावें और स्वानभोंकें सर्व नगरीमें इसभांति इसे फेरो दुःख देवो तब वे रावणकीयाज्ञा प्रमाण कुवचन बोलते ले निकसे सो यह बन्धन तुड़ाय ऊंचा चला जैसे यति मोह फांस तोड़ मोनपुरी को जाय श्राकाशसे उछल अपने पगों की लातों कर लंका का बड़ा दार ढाया तथा और छोटे दरवाजे ढाहे इन्द्रके महिल तुल्य रावणके महिल हनूमान के चरणों के घातसे विखर गए जिनके बड़े बड़े स्तंम थे और महलके आस पास रत्न सुवर्णका कोट था सो चूर डारा जैसे वज्रपातके मारे पर्वत चूर्ण होजाय तैसे रावणके घर हनूमान रूप बत्र के मारे चूर्ण होयगए यह हनूमान के पराक्रम सुन सीताने प्रमोद किया और हनुमान को बन्धा सुन विषाद किया था तब वनोदर पास बैठी थी उसने कही हे देवी वृथा कोहेको रुदन करे यह सांकल तुड़ाय श्राकाश में चला जाय है सो देख तब सीता अतिप्रसन्न भई और चित्तमें चितवती भई यह हनमान मेरे समाचार
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