Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
६९०
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देवकुल्य पराक्रमी प्रसिद्ध हैं यश जिनके सकल गुणों के मंडन युद्ध को निकसे महाबलवान मेघवाहन कुमार इंद्र के समान रावण का पुत्र अतिप्रिय इंद्रजीत सोभी निकसा जयंतसमान धीरबुद्धि कुम्भकरण सूर्य्य के विमान तुल्य ज्योतिप्रभव नामा विमान उस में अरूद्ध त्रिशूल का चायुध घरे निकसा और रावण भी सुमेरु के शिखर तुल्य पुष्पकनाम अपने विमान पर चढ़ इद्र तुल्य पराक्रम जिसका सेना कर आकाश भूमि को आबादित करता हुवा दैदीप्यमान आयुधों को घरे सूर्य समान ज्योति जिस की सो भी अनेक सामंतों सहित लंका से बाहिर निकसा वे सामंत शीघ्रगामी बहुरूप के घरणहारे वाहनों पर चढ़े कैथकों के रथ कैयकों के तुरंग कैयकों के हाथी कैयकों के सिंह तथा शूरसांभर बलध भैंसा उष्ट्र मीढ़ा मृग अष्टापद इत्यादि स्थल के जीव और मगरमच्छ यदि अनेक जल के जीव और नाना प्रकार के पक्षी तिन का रूप धरे देव रूपी वाहन तिन पर चढ़े. अनेक योधा रावण के साथी निकसे भामंडल और सुग्रीव पर रावण का अतिक्रोध सो राक्षसवंशी इस से युद्ध को उद्यमी भए रावण को पयान करते अनेक अपशकुन भए तिनका वर्णन सुनो दाहिनी तरफ शल्यकी कहिए सेह मंडल को बांधे भयानक शब्द करती प्रयण का निवारण करे है और गृद्ध पक्षी भयंकर अपशब्द करते आकाश में भ्रमते मानों रावण का क्षय ही कहे हैं और अन्य भी अनेक अाशुकुल भए स्थलके जीव श्राकाशके जीव अति व्याकुल भए क्रूरशब्द करते भए रुदन करते भये सा यद्यपि राचसों के समूह सवही पंडित हैं शास्त्रका विचार जान हैं तथापि शूरवीरता के गर्व से मूढ़ भये महा सेनासहित संग्राम के अनि कर्मके उदयसे जीवोंका जब कान यावे है तब अवश्य
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