Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
परायण
६६।।
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आत्मनिष्ठुर गंभीरनाद संनदसंवृध वाहू अनुसिदन इत्यादि राक्षस पक्षके योधा वानर वंशीयों - की सेना को क्षोभ उपजावते भए । तिन को प्रबल जान बानर बंशीयों के योधा युद्ध को उद्यमी भए मन्दन मदनाकुर संताप प्रक्षित आक्रोशनन्दन दुरित अनघ पुष्पास्त्र विघ्न प्रीयंकर इत्यादि अनेक वानरवंशी योधा राक्षसों से लड़ते भए उसने वाको ऊंचे स्वर से बुलाया घाने उसको बुलाया इनके परस्पर संग्राम भया नाना प्रकारके शस्त्रों से आकाश व्याप्त होय गया संताप तो मारीच से खड़ता भया और अप्रथितसिंहज घन से और विघ्न उद्यान से और आक्रोश सारण से नंदन से इन समान
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धावों में अद्भुत युद्ध भया तब मारीच ने संतापका निपात किया और नन्दनने उपर के बक्षस्थल atara र सिंहकटि ने प्रथिति के और उद्दामकीर्ति ने विघ्न को दया उस समय सूर्यास्त भया अपने अपने पति को प्राणरहित भए सुन इनकी स्त्री शोकके सागर में मग्न भई सो उनको रात्रि दीर्घ होती भई दूजे दिन महा क्रोध के भरे सामन्त युद्ध को उद्यमी भए वज्राच और चुभितार मृगेन्द्र दमन और विधि शंभू और स्वयम्भू चन्द्रार्क और वज्रोदर इत्यादि राक्षस पक्ष के बड़े २ सामन्त और वानर वंशियोंके सामन्त परस्पर जन्मान्तर के उपार्जित बैर तिनसे महा क्रोधरूप होय युद्ध करते भए अपने जीवनमें निस्पृह संक्रोधने महाकोधकर खिपितार को महा ऊंच स्वरकर बुलाया और वाढवलीने मृगादि दमनको बुलाया और वितापीने विधिको बुलाया इत्यादि योधा परस्पर युद्ध करते भए और यौधा अनेक ए शार्दूलने वञ्चदरको घायल किया और वज्रोदरने शार्दूलको घायल किया और खिपितार संकोध • को मारताभया और शंभू ने विशालद्युति मारा और स्वयंभूने विजयको लोहयष्टि से मारा और विधि ने
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