Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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छटगए उनहीके कटक में पड़े तिनकी विकराल दाढ विकराल वदन भयंकरनेत्र तिनसे सकलसेना विहल पुराण ६ भई मानो सेनारूप समुद्र में वे सिंह कल्लोलरूपभए उछलते फिरे हैं अथवा दुष्ट जलचर जीवों समान
विचरे हैं अथवा सेनारूप मेघमें विज़ली समान चमके हैं अथवा संग्रामही भया संसार चक्र उसमें सेना के. लोक बेई भए जीव तिनको ये रथके छुटे सिंह कर्मरूप होय महादुखी करे हैं इनसे सर्व सेना दुखरूप भइ तुरंग गज रथ पियादे सब ही विह्वल भए रणका उद्यमतज दशदिशा को भाजे तब पवनका पुत्र सबों को पेल रावण तक जायपहुंचा दूरसे रावण को देखा सिंहों के रथ चढ़ा हनूमान धनुष वाण लेय रावण पर गया। रोवण सिंहों से सेना को भयरूप देख और हनूमानको काल समान महा दुर्द्धरजान आप युद्ध करने को उद्यमी भया तव महोदर रोवण को प्रणाम कर हनमानपर महाक्रोध से इससे लड़नेको श्राया सो इसके
और हनूमानके महायुद्ध भया उस समयमें वे सिंह योधावोंने वश किये सो सिंहोंको वशीभूत भए देख महाक्रोधकर समस्त राक्षस हनूमान पर पड़े तव अञ्जनी का पुत्र महाभट पुण्योधिकारी तिन सबको अनेक बाणोंसे थांभताभया और अनेक राक्षसोंने अनेकबाण हनूमान पर चलाए परन्तु हनूमानको चलायमान न करते भए जैसे दुर्जन अनेक कुवचन रूप वाण संयमीके लगावे परन्तु तिनके एक न लगे तैसे हनूमान के राक्षसोंका एक बाणभी न लगा अनेक राक्षसोंसे अकेला हनूमानको वेढा देख वानरवंशी विद्याधर युद्ध के निमित्त उद्यमी भए सुषेण नल नील प्रीतंकर विराधित सत्रासत हरिकटसूर्य ज्योति महावल!
जांबूनन्द के पुत्र कई नाहरों के स्थ कई गजोंके स्थ कैई तुरंगों के स्थ चढ़े रावण की सेना पर दौड़े सो | वानखंशियोंने रावणकी सेना सब दिशा में विध्वंस करी जैसे क्षुधादि परीषह तुच्छतियोंके व्रतों को ।
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