Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराव
भुजा सुग्रीव इन्द्र सारिखा शोभायमान भिंडिपाल लिये बैठे सातवीं चौकी महा शस्त्रका निकन्दक तरवार सम्हाल आप भामंडल बैठा पूर्व के द्वार अष्टपादकी ध्वजा जाके ऐसा सोहताभया मानों महाबली "अष्टपादही है और पश्चिमके द्वार जाम्बुकुमार विराजताभया और उत्तरके द्वार मन्त्रियों के समूह सहित बालीका पुत्र महा बलवान चन्द्रभारीच बैठा इस भांति विद्याधर चौकी कै सो कैसे सोहतेभए जैसे आकाश में नक्षत्र मंडल संभालते और वानरवंशी महाभट वे सब दक्षिण दिशा की तरफ चौकी बैठे इस भांति चौकी का यत्नकर विद्याधर तिष्ठे लक्षमण के जीने में है संदेह जिनके प्रबल है शोक जिनको जीवों के कर्म रूप सूर्यके उदय से का प्रकाश होय है ताहि न मनुष्य न देव न नागन असुर कोई भी निवारने समर्थ नहीं यह जीव अपना उपार्जा कर्म आपही भोगवे है ॥ इति त्रेसठवां पर्व संपूर्णम् ।।
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अथानन्तर राव लक्ष्मणका निश्चयसे मरण जान और अपने भाई दोनों पुत्रोंको बुद्धिमें मरण रूपही जान अत्यन्त दुःखो भया रावण विलाप करे है हाय भाई कुम्भकरण परम उदार अत्यन्त हितु कहा एसी बन्धन व्यवस्था को प्राप्त भए हाय इन्द्रजीत मेघनाद महा पराक्रम के धारी हो मेरी भुजा समान दृढ़ कर्म के योग से बंधको प्राप्तभए ऐसी व्यवस्था अबतक न भई में शत्रु का भाई हना है सो न जानिये शत्रु व्याकुलभया क्या करे तुम सारिखे उत्तम पुरुष मेरे परप वल्लभ परम व्यवस्था को प्राप्त भए इस समान भोकों यति कष्ट कहां ऐसे रावण गोप्य भाई और पुत्रोंका शोक करताभया और जानकी लक्षमण के शक्ति लगी सुन प्रति रुदन करती भई हाय लक्षमण विनयमान गुणभूष तू मोमन्द भागिनी के निमित्त ऐसी अवस्थाको प्राप्तभया में तुझे ऐसी अवस्थामें भी देखा चाहूं हूं सो दैव योगसे देखने
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