Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
जीत के शस्त्र निराकरण किए जिनके पुण्य का उदय है तिनका धात न होय फिर क्रोधकर इन्द्रजीत पुराण हाथी से उतर सिंगोंके रथ चढ़ा समाधानरूप है बुद्धि, जिसकी नाना प्रकारके दिव्य शस्त्र और सामान्य
शस्त्र इनमें प्रवीण सुग्रीवपर मेघ वाण चलाया सो संपूर्ण दिशा जल रूप होय गई तब सुग्रीव ने पवन वाण चलाया सो मेघ वाण विलाय गया और इन्द्रजीत का छत्र उड़ाया और ध्वजा उड़ाई और मेर वोहन ने भामंडल पर अग्नि वाण चलाया सो भामण्डलका धनुष भस्म होयगया और सेना में अग्नि प्रज्वलित भई तव भामण्डल ने मेघवाहन परमेववाण चलाया सो अग्निबाण विलयगया और अपनी सेना की रक्षा करी फिर मेघवोहन ने भामण्डल को स्थरहित क्रिया तब भामण्डल दूजेरथचढ युद्ध करने लगा मेघ बाहन ने तामसबाण चलाया सो भामण्डलकी सेना में अन्धकार होय गया अपना पराया कुछ सूझे नहीं मानों मूर्छा को प्राप्त भए तब मेघवाहन ने भामण्डल को नागपाश से पकडा मायामई सर्प सर्व अंग में लिपट गए जैसे चन्दन के वृक्ष के नाग लिपट जावें कैसे हैं नाग भयंकर हैंजे फण तिन करमहा विकराल भामण्डल पृथिवीपर पड़ा और इसही भान्ति इन्द्र जीतने सुग्रीवको नागपाश कर पकड़ा सो धरती पर पड़ा तबविभीषणजो विद्याबल में महाप्रवीण श्रीरामलक्ष्मण से दोनों हाथजोड़ सीसनिवाय कहता भया हे राम महबाहो लक्षमण महावीर इन्द्रजीत के बालोंसे व्याप्त सब दिशा देखो धरती आकाश बाणों से आयादित है उल्कापातके स्वरूप नाग बाण तिन से सुग्रीव और भामण्डल दोनों भूमि विषे बंधे पडे हे मन्दोदरी के दोनों पुत्रों ने अपने दोनोंमहाभट पकड़े अपनोसेनाकेजे दोनों मूलथे वे पकडेगए तवहमारेजीवनेसे क्या इनदिना सेना शिथल होयगई है देखोदशों दिशा कोलोक भागे हैं औरकुम्भकर्ण ने महायुद्धकर हनुमान को पकड़ा है
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