Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पति पै जाय कहेगा सौ असीस देती भई और पुष्पांजलि नाखती भई कि तू कल्याणसे पहुंचियो |
समस्त ग्रहं तुझे सुखदाई होंय तेरे बिघ्न सकल नाशको प्राप्त होय तू चिरंजीव हो इसभान्ति परीक्ष | असीस देती भई जे पुण्याधिकारी हनुमान सारिखेपुरुष हैं वे अद्भुत आश्चर्यको उपजावेहें कैसे हैं वेपुरुष | जिन्होंने पूर्व जन्म में उत्कृष्ट तप ब्रत बोचरे हैं और सकल भव में विस्तरे है ऐसी कीर्ति के धारक हैं।
और जो काय किसीसे नबने सो करपे समर्थ हैं और चितवनमें न आवे ऐसा जोप्राश्चर्य उसे उपजावें हैं इसलिये सर्व तजकर जे पंडित जन हैं वे धर्म को भजी और जे नीचकम हैं वे खोटे फलके दाता हैं। इसलिये अशुभकर्म सजी और परम सुखका श्रास्वाद तामें श्रासक्त जेवाणी सुन्दर लीलाके धारको सूर्य के तेजको जीते ऐसे होय हैं ॥ इति पनवा पर्व सपूर्णम् ॥ _ अथानन्तर हनूमान अपने कटक में आय किहकंधापुर को आया लंकापुरी में पिम्न कर आया
वजा छत्रादि नगरी की मनोग्यता हर श्राक किहकिंधापुर के लोग हनूमानको आया जाम बाहिर निकसे नगर में उत्साह भया यह धीर उदार है पराक्रम जिसका नगर में प्रवेश करता भया सी नगर के नर नारियों को इसके देखने का अति संभ्रमभया अपना जहां निवास वहां जाय सेनाके यथा योग्यडेरे कराए राजा सुग्रीवने सब बृतान्त पूछा सो उसे कहा फिर रामके समीप गए राम यह चितवन कर रहे हैं कि हनुमान आयाहै सो यह कहेगा कि तुम्हारी प्रिया सुखसे जीवे है हनुमानने उसही समय प्राय गम को देखा महाक्षीण वियोगरूप अग्निसे तप्तायमान जैसे हाथी दावानलकर व्याकुलहोय महाशोकरूप गर्त में पडै तिनको नमस्कारकर हाथ जोड हर्षितपश्न होय सीता की वार्ता कहता भया जेते रहस्य के
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