Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पप गणी मतिक्रिया उसने दोनोंको पुण्यकी बांछाकर भातमें छिपाय सुवर्णदिया सो गिरि कपटीने भात ६८९ / में स्वर्ण जान गोभूतको छलकर मारा दोनोंका स्वर्ण हर लिया सो लोभसे प्रीतिभंग होयहै और भी | कथा सुनो कौशांबी नगरी में एक ब्रहछन नामा ग्रहस्थी उसके पुरावदानामा स्त्री उसके पुत्र अहिदेव | महीदेव सो इनका पिता मूवा तब ये दोऊ भाई धनके उपारजने निमित्त समुद्में जहाजमें बैठ गए
सो सर्व द्रव्यस्य एक रत्नमोल लिया सो वह रत्नको जो भाई हाथमें लेय उसके ये भावहाय किमें दूजे भाइको मारूंसो परस्पर दोऊ भाइयों के लोटे भावभए तब घरपाय वह रन माताको सौंपा सी माताके ये भावभएं कि दोनों पुत्रोंको विष देय मारूतब माता और दोनों भाइयों ने उसरत्नसे विरक्त होय कालिंदी नदीमें डारा सोरत्नको मछली निगलगई सो मछलीको धीवग्ने पकरी और अहिदेव मही देवहींके बेची सो अहिदेवमहीदेवकी बहिन मछलीको विवारतीथी सोरत्न निकसा तब इसकेये भावभए कि माता को और दोऊ भाइयों को मारूं तब इसने सकल वृतांतकहा कि इस रत्नके योगसे मेरे । ऐले भाव होय, जो तुमको मारूं तब रत्नको चूर डारा माता बहिन और दोऊ भाई संसारके भाव | से विरक्त होय जिनदीना धरतेभए इस लिए द्रव्य के लोभसे भाइयों में भी वैर होय है और ज्ञान के
उदयकर और मिटे हे और गिरने तो लोभ के उदय से गाभूत को मारा और अहि देवके महिदेवके वैर मिट गया सो महा बुद्धि विभीषणका द्वारपाल अायाहै उसको मधुवचनोंसे विभीषण को बुलायो तव
द्वारपालसोस्नेह जनाया और विभीषणणको अति श्रादरसे बुलाया विभीषण रामके समीप आयासोराम । विभीषणका अतिसादर करमिले विभीषण बिनती करता भयाहेदेव हेप्रभो निश्चयकर मेरेइस जन्ममें
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