Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
कांधे से इस भाति रावणके हजारों मुभट मारे सोनगर में हाहाकार भया और रश्नों के माहल गिर पडे तिनका शब्द भया और हाथियों के थंभ उपार डारे और घोड़े पवनमंडल पानों कीन्याई उडेर फिरहँ
और वापी फोर डाग सो कीचड़ रहगया समस्त लंका ब्याकुल भई मानों चाक चढ़ाई है लंका रूप सरोवर राक्षसरूप मीनों से भरा सो हनमानरूप हाथी ने गाह डारा तब मेघ बाहन वक्तर पहिर बड़ी फौज लेय पाया और उसके पीछेही इन्द्र जीत पाया सो हनूमान उनसे युद्ध करनेलगा लंकाकी वाह्यभूति में महायुद्ध भयो जैसा खरदूषण के और लक्षमण के युद्धभया था और हनमान चार घोड़ों ।
के रथपर चढ़ धनुषवाण लेय राक्षसोंकी सेना पर दौड़ा तब इन्द्रजीत ने बहुत बेरतक युद्ध कर हनुमान । ) को मागफांससे पकड़ा और नगरमें लेाया सो इसके आयवसे पहिलेही रावण के निकट हनुमान की ।
पुकार होय रहीथी अनेक लोग नाना प्रकार कर पुकारकर रहेथे कि सुग्रीवका बुलाया यह अपने नगर से । किहकंधापुर आया रामसो मिला और वहां से इस ओर आया सो महेन्द्र का जीता और माधवों के। उपसग निवारे दधिमुखकी कन्या रामपै पठाई और बज्रमई कोट विश्व॑सा वज्रमुखको मारा और उसकी । पुत्री लंका सुन्दरी अभिलाषवन्तीभई और उससंग रमाऔर पुष्पनामा वन विध्वंसा और वनपालक बिल करे और बहुत सुभट मारे औरघटरूप जे स्तन तिनकर मगच सींच मालियों की स्त्रियों ने पुत्रोंकी नाई जे वृच बढ़ाएथे वे उपारडारे और वृक्षों से वेल दूरकरी सो विधवा स्त्रियोंकी नाई सूमिमें पड़ी तिनके पल्लव मूक गए और फल फूलों से नमीभूत नानाप्रकारके वृक्ष मसान कैसे वृक्ष.करडारे सो यह अपराध सुन रावण अति कोप भयाथा इतनेमें इन्द्रजीत हनमानको लेकर आया सो रावणने इसको लोह की सांकलों।
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