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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पुराण कांधे से इस भाति रावणके हजारों मुभट मारे सोनगर में हाहाकार भया और रश्नों के माहल गिर पडे तिनका शब्द भया और हाथियों के थंभ उपार डारे और घोड़े पवनमंडल पानों कीन्याई उडेर फिरहँ और वापी फोर डाग सो कीचड़ रहगया समस्त लंका ब्याकुल भई मानों चाक चढ़ाई है लंका रूप सरोवर राक्षसरूप मीनों से भरा सो हनमानरूप हाथी ने गाह डारा तब मेघ बाहन वक्तर पहिर बड़ी फौज लेय पाया और उसके पीछेही इन्द्र जीत पाया सो हनूमान उनसे युद्ध करनेलगा लंकाकी वाह्यभूति में महायुद्ध भयो जैसा खरदूषण के और लक्षमण के युद्धभया था और हनमान चार घोड़ों । के रथपर चढ़ धनुषवाण लेय राक्षसोंकी सेना पर दौड़ा तब इन्द्रजीत ने बहुत बेरतक युद्ध कर हनुमान । ) को मागफांससे पकड़ा और नगरमें लेाया सो इसके आयवसे पहिलेही रावण के निकट हनुमान की । पुकार होय रहीथी अनेक लोग नाना प्रकार कर पुकारकर रहेथे कि सुग्रीवका बुलाया यह अपने नगर से । किहकंधापुर आया रामसो मिला और वहां से इस ओर आया सो महेन्द्र का जीता और माधवों के। उपसग निवारे दधिमुखकी कन्या रामपै पठाई और बज्रमई कोट विश्व॑सा वज्रमुखको मारा और उसकी । पुत्री लंका सुन्दरी अभिलाषवन्तीभई और उससंग रमाऔर पुष्पनामा वन विध्वंसा और वनपालक बिल करे और बहुत सुभट मारे औरघटरूप जे स्तन तिनकर मगच सींच मालियों की स्त्रियों ने पुत्रोंकी नाई जे वृच बढ़ाएथे वे उपारडारे और वृक्षों से वेल दूरकरी सो विधवा स्त्रियोंकी नाई सूमिमें पड़ी तिनके पल्लव मूक गए और फल फूलों से नमीभूत नानाप्रकारके वृक्ष मसान कैसे वृक्ष.करडारे सो यह अपराध सुन रावण अति कोप भयाथा इतनेमें इन्द्रजीत हनमानको लेकर आया सो रावणने इसको लोह की सांकलों। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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