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पद्म
पुराण
॥६६॥
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प्रकाश किया है आकाश जिसने याप उनको अपना रूप दिखाया उगते सूर्यं समान क्रोधरूप होंठ डसता लाल नेत्र तब इसके भय से सब किंकर भागे तब और कर सुभट आए शक्ति तोमर खड़ग चक्रगदा धनुष इत्यादि श्रायुध कर में धरे और अनेक शस्त्र लावते पाए तब अंजनी का पुत्र शस्त्र रहित था सो बनके जे वृक्ष ऊंचे ऊंचे थे उनकेसमूह उपाड़े और पर्वतोंकी शिला उपाड़ी सो रावण के सुभटों पर अपनी भुजोंकर वृक्ष और शिला चलाई मानों कालही है सो बहुत सामंत मारे कैसी है हनुमान की भुजा महा भयंकर जो सर्प उसके फण समान है श्राकार जिनका शालवृक्ष पीपल बड़े चम्पा नीच अशोक कदम्ब कुन्द नाग अर्जुन धव श्राम्र लोध कटहल बडे बडे, वृक्ष उपाड़ उपाड़ अनेक योधा मारेक शिलावों से मारे कैयक मुक्कों और लातों से पीसडारे समुद्र समान रामए के सुभटों की सेना क्षणमात्र में व खेरडारी कैयक मारे कैयक भागे हे श्रेणिक मृगोंके जीतवेको मृगराजका कौन सहाई होय और शरीर बलहीन होय तो घनोंकी सहायकर क्या उस बनके सबही भवन और वापिका और विमान सारिखे उत्तममंदिर सब चूरडारे केवल भूमिरहित बनके मन्दिर और वृक्ष विध्वंस किये सोमार्ग होय गया जैसे समुद्र सूकजाय और मार्ग होयजाय फोरि डारी है हाटों कपिंक्ति और मारे हैं अनेक किंकर सो बाजारऐसा होय गया मानों संग्रामकी भूमि है उतंग जे तोरणसो पडे हैं और ध्वजावों की पंक्ति पडी सो आकाश से मानों इन्द्रधनुष पड़ा है और अपनी जंघोंसे अनेक वर्ण रत्नों के महिल ढाहे सो अनेक वर्णके रत्नों की रजकर मानों आकाश में हजारों इन्द्र धनुष चढ़े हैं और पायनकी लातन से पर्वत समान ऊंचे घर फोर डारे तिन का भयानक शब्द होता भया और कई यक तो हाथोंसे मारे और कई एक पगों से मारे और छाती से और
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