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पुराण
की कृपा
अत्यन्त तथापि तुम अपने प्राणा यत्न से राखियो तुम्हारेसे मेरा बियोग भया अब #६६ ॥ | तुम्हारे यत्न से मिलाप होयगा ऐसा कह सीता रुदन करती भई तब हनुमान ने धीर्य बंधाया और कही
हे माता जो तुप आज्ञा करोगी सोही होयगा और शीघ्र ही स्वामी सो मिलाप होयगा यह कह हनूमानसीता से विदा भया और सोता ने पतिकी मुद्रिका अंगुरी में पहिर ऐसा सुख माना मानों परि का समागम भया ओर बन की नागरो हनूमान को देख कर आश्चर्यको प्राप्त भई और परस्पर ऐसी वात करती भई यह कोई साक्षात् कामदेव है अथवा देव है सो बनकी शोभा देखवे को आया है तिन में कोई एक काम कर व्याकुल होय वीन वजावती भई किन्नरी देवीयों कैसे हैं स्वर जिनके कोई यक चन्द्रवदनी
हस्तविषे दर्पण राख और इसका प्रतिबिम्ब दर्पण में देखती भई देखकर आसक्त भई इस भांति समस्त स्त्रियों को संभ्रम उपजाय हार माला सुन्दर वस्त्र घरे है दैदीप्यमान अग्निकुमार देववत् सोहताभया ॥
अथानन्तर इनके बनमें वने की वार्ता रावणने सुनी तब क्रोधरूपहोय रावणने महा निर्दई किंकर युद्ध में जे प्रवीण थे वे पठाए और तिनको यह आज्ञाकरी कि मेरी क्रीड़ाका जो पुष्पोद्यान वहां मेरा कोई एक द्रोही आया है सो अवश्य मार डारियो तब ये जायकर वनके रक्षकोंको कहतेभए हो बनके रक्षकहो तुम क्या प्रमादरूप हो रहे हो कोई उद्यान में दुष्ट विद्याधर आया है सो शीघ्रही मारना अथवा पकड़ना वह महा विनयी है वह कौन है कहां है ऐसे किंकरों के मुख से ध्वनि निकसी सो हनूमान ने सुनी और धनुष धरणारे शक्ति के घरणहारे गदाके घरणहारे खड्ग बरबीके घरणहारे अनेक लोग श्रवते हनूमानने देखे तब पवन का पूत सिंह से भी अधिक है पराक्रम जिसकामुकटमें रत्न जड़ित बानरका चिन्ह उसकर
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