________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
पराम
-
ण्य से बंधाया और कहताभया कि यह पापी निलंजदुराचारी है अब इसके देखनेकर क्या यह नाना अप॥६०. राध का करणहारा ऐसे दुष्टको क्यों न माम्येि तब सभोके लोक सही माथा धुनकर कहतेभए हेहनूमान
जिसकेप्रसादकर पृथिवीमें तूप्रभुताको प्राप्तभया ऐसे स्वामीके प्रतिकूल होय भमिगोचरीकादूतभयारावल की ऐतीकृपा पीठ पीछे डारदई ऐसे स्वामीको तज जे भिखारी निर्धन पृथिवीमें श्रमतेफिरें वे दोनों वीर तिन का तू सेवकभया और रावणने कहा कि तूपवनका पुत्रनहों किसी औरकर उपजाहै तेरी चेष्टाअकुलीनकी प्रत्यक्ष दीखे है जे जार जात हैं तिन के चिन्ह अंगमें नहीं दीखे हैं अब अनाचारको आचरें तब जानिए यह जारजात है कहां केसरी सिंहका बालक स्यालका प्राश्रयकरे नीचका आश्रयकर कुलवन्त पुरुष न जीवें अब तूराजदार का द्रोही है निग्रह करने योग्यहै तब हनूमान यह वचनसुन हंसा और कहाभयान जानिए.. कौन का निग्रह होय इस दुर्बुद्धिकर तेरी मृत्युनजीक आईहै केएक दिनमें दृष्टिपरेगी लक्षमणसहित श्रीराम बड़ी सेना से आवे हैं सो किसीसे रोकेन जाय जैसे पर्वतोंकर मेघन रुके और जैसे नानाप्रकार के अमृत समान आहार कर तृप्त न भया और विष की एक बंद भये नाश को प्राप्त होय तैसे हजारों स्त्रियों कर तू तृप्तायमान न होय और पर स्त्रीकी तृष्णाकर नाशको प्राप्त होयगा जो शुभ और अशुभ कर प्रेरी बुद्धि होनहार माफिक होयहै सो इन्द्रादि कर भी अन्यथा न होय दुखुद्धिमें सैकड़ों प्रिय वचन कर उपदेश दीजिए तौभी न लगें जैसा भवितव्य होय सोही होय विनाशकाल अावे तव बुद्धिका नाश होय जैसेकोई प्रमादी विषका भरा सुगन्ध मधुर जल पीवे तो मरणको पावे तैसे हे रावण तू परस्त्रीका लोलुपी नाश को प्राप्त होयगा तू गुरु परिजन बृद्धमित्र प्रिय बांधव मन्त्री सब के वचन उलंघकर पापकर्म में प्रवृतो
For Private and Personal Use Only