Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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जया करेंगे इनकी मृत्यु मिकटाई है इसलिये भूमिगोचरी के सेवक भयहें वे अतिमह निर्लज्ज तुन्छवृत्ति Momसतनी बथा गर्वरूप होय मृत्यु के समीप तिष्ठे हैं ये वचन मन्दोदरी के सुनकर सीता क्रोधरूप होय कहती !
भई हे मन्दोदरी तू मन्दवद्धि है जो बृथा ऐसे कहे है तें मेरा पति अद्भुत पराक्रमका धनी क्या नहीं सुना है शूरवीर और पण्डितोंकी गोष्ठी में मेरा पति मुख्य गाइये है. जिसके वज्रावर्त धनुषका शब्द रण संग्राम में सुनकर महा रणधोर यावा धार्य नहीं घरे हैं भयसे कम्पायमान होय कर दूर भागे हैं और जिसका लक्षमण छोटयभाई लक्ष्मीका निवास शत्रु पक्ष के चय करनेको समर्थजाके देखलेही शत्रु दूर भागजावें बहुत कहिनसे क्या मेरा पति सम लक्ष्मण सहित समुद्र तरकर शीघही श्रावे है सो युद्धमें थोड़े ही दिनों में तू अपने पतिको मूवा दखेगी मेरा पति प्रबल पराक्रम का धारी है तू पापी भरतार की प्राज्ञा रूप दूती होयपाई है. सो शिताबही विधवा होयगी और बहुत रुदन करेगी ये वचन सीताके मुखसे सुनकर मन्दोदसे रामा मयकी पुत्री अति कोषको प्राप्तभई अठरा हजार राणी हाथोंकर सीता के माखे को उद्यमी भई और क्रूर वचन कहती सीता पर आई तब हनूमान बीच आन कर तिनको थांभी जैसे पहाड़ नदीके प्रवाह को थांभे वे सब सीताको दुःखका कारण बेदनारूप होय हनिबे को उद्यमी भई थी सो हनुमानने वैद्य रूप होय निवारी तब ये सब मन्दोदरीअादि रावणकी राणी मान भंग होय रावणपै गई । क्रूर हैं चित्त जिनके तिनको गये पीछे हनूमान सीता से नमस्कारकर आहार के निमित्त विनती करता। भया हे देवि यह सोगरांत पृथिवी श्रीरामचन्द्रकी है इसलिये यहांका अन्न उनहीकाहै बैरियोंका न जानों इस भांति हनुमान ने सम्बोधी और प्रतिज्ञा भी यही थी कि जो पति के समाचार सुनूं तव भोजनकरूं ।
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