Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
राम महासुन्दर सौम्य है मुख जिनका कांति के समूह से विराजमान नेत्रों को उत्साह के करणहारे महा ४er" || विनयवान् सीता समीप बैठी है सो मनुष्य हाथ जोड़ सिर पृथिवी से लगाय नमस्कार करता भया तब आप दया कर कहते भए, तू छाया में जाय बैठ भय न कर तब वह आज्ञा पाय दूर बैठा रघुपति अमृत रूप वचन कर पूछते भए तेरा नाम क्या है और कहां से आया और कौन है तब वह हाथ जोड़ बिनती करता भया हे नाथ में कुटंबी हूं मेरा नाम सिरगुप्त है दूर से आऊं हूं तब आप बोले यह देश जड़ का से है तब वह कहता भया ह देव उज्जयिनीनामानँगरी उसका पति राजा सिंहोदर प्रसिद्ध प्रतापकर नवाए हैं बड़े बड़े सामंत जिसने देवों समान है विभव जिसका और एक दशांगपुरकापति वज्रकर्ण सो सिंहोदरका सेवक अत्यन्तप्यारा सुभट जिसने स्वामी के बड़े बड़े कार्य किए सो निर्ग्रन्थ मुनिको नमस्कार कर धर्मश्रवण कर उसने यह प्रतिज्ञा करी कि मैं देव गुरु शास्त्र टार और को नमस्कार न करूं साधु के प्रसादकर उसको सम्यक दर्शन की प्राप्ति भई सो पृथिवी में प्रसिद्ध है आपने क्या अब तक उसकी वार्ता न सुनी, तब लक्ष्मण राम के अभिप्राय से पूछते भए कि वज्रकर्ण पर कौन भान्ति संतन की कृपा भई तब पंथी कहता भया हे देवराज एक दिन वज्रकर्ण दसारण्य बन में मृगया को गया था जन्म ही से पापी क्रूरकर्म का करणहारा इन्द्रियों कालोलुपी महामूढ़ शुभक्रिया से परांमुख महासूक्ष्म जिन धर्म की चर्चा
न जाने काम क्रोध लोभी हीए अंध भोग सेवन कर उपजा जो गर्ब सोई भया पिशाच उसी कर पीडित सो बन में भ्रमण करे सोउसने ग्रीष्म समय में एक शिला पर तिष्ठतासंता सत्पुरुषोंकर पूज्य ऐसा महा मुनि देखा, चार महीना सूर्य की किरण का आताप सहनद्दारा महातपस्वी पक्षी समान निराश्रय
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