Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण ॥५३॥
जीते हम इस अतिवीर्य सो आए मिले सो भरतमहाराज कोप भए हौवेगेन जानिये क्या करें अथवा वे दयावंत पुरुषहें जाय मिलें पायन परें कृपाही करेंगे अतिवीर्य के मित्र राजा ऐसा विचार करतेभए और श्रीराम अतिवीर्यको पकड हाथीपर चढ़ जिनमंदिर गए हाथीसे उतर जिनमंदिरमें जाय भगवान की पूजा करी और बरधर्मा आर्यिकाकी बन्दना करी बहुत स्तुति करी रामने अतिवीर्य लक्ष्मणको सौंपा सो लक्षमणने केस गह दृढ़ बांधा तब सीताने कही इसे ढीला करो पीडा मत देवो शांतता भज कर्मके उदय से मनुष्य मति हीन होयजायहैं आपदा मनुष्यों में ही होय बडे पुरुषोंको सर्वथा पर की रक्षाही करना सत् पुरुषों को सामान्य पुरुष का भी अनादर न करना यहतो सहस्रराजावोंका शिरो मणिहै इस लिये इसे छोड देवो तुम यह बश किया अब कृपाही करनायोग्यहै राजावोंका यही धर्म है जो प्रबल शत्रुवोंको पकड छोडदें यह अनादि कालकी मर्यादाहै जब इसभांति सीताने कही तब लक्ष्मण हाथ जोड प्रणामकर कहताभया हे देवी तुम्हारी आज्ञासे छोडबकी क्याबात ऐसा करूं जो देव इसकी सेवा करें लक्षमणका क्रोध शांत भया तब अतिवीर्य प्रतिबोध को पाय श्रीरामसों कहता भया हे देव तुमने बहुत भला किया ऐसी निर्मलबुद्धि मेरी अबतक कभीभी न भईथी अब तुम्हारेप्रताप से भई है तब श्रीराम उसे हार मुकटादि रहित देख विश्रामके बचन कहते भए कैसे हैं रघुबीर सौम्यहै श्राकार जिनका हे मित्र दानता तज जैसा प्राचीन अवस्थामें धैर्यथा तैसाहीधर बडे पुरुषोंकेही संपदा और आपदादोनों होयहैं और अब तुझे कुछ श्रापदानहीं नंद्यावर्तपुरका राज्य भरतकाआज्ञाकारी होय कर कर तब अतिवीर्य ने कड़ी मेरेअवगज्यकी वांछा नहीं मैं गज्यका फलपाया अब मैं औरही अवस्था
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