Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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| कीर्तिचन्द्रमा समान निर्मल संकल लोकमें विस्तररही है सो छिपकर लेजाने में मलिन न होय हे श्रेणिक Mean अर्थीदोषको न गिने इसलिये गोप्प लेजाइवेका यत्न किया इस लोकमें लोभ समान और अनर्थ नहीं
और लोभमें परस्त्री के लोभ समान महा अनर्थ नहीं रावणने अवलोकनी विद्या से वृत्तान्त पूछा सो वाके कहेसे इनका नाम कुल सब जाने लक्षमण अनेकसे लड़नहारा एक युद्ध में गया और यह रामहै यह इसकी स्त्री सीताहै औरजब लक्षमण गयो तब रामसे ऐसा कहगयाहै जो मोपै भीड़ पड़ेगी तब मैं सिंहनाद करूंगा तब तुम मेरी सहाय करियो सो वह सिंहनाद में करूं तब यह राम धनुषवाण लेय भाई पै जावेगे और मैं सीता लेजाऊंगा जैसे पक्षी मांसकी डली को लेजाय और खरदूषणका पुत्र तोइनने माराही था और उसकी स्त्रीका अपमान किया सो वह शक्ति आदि शस्त्रोंकर दोनों भाइयोंको मारेहीगाजैसे महो' प्रबल नदीका प्रवाह दोनों ढाहे पाड़े नदीके प्रवाहकी शक्ति छिपी नहीं है तैसे खरदूषणकी शक्ति काहू से छिपी नहीं सबकोई जाने हैं ऐसा-विचारकर मूढ़मति कामकर पीड़ित राबण मरणके अर्थ सीताके हरण का उपाय करताभया जैसे दुखुद्धि वालक विपके लेनेका उपाय करे । - अथानन्तर उधरतो लक्ष्मण और कटकसहित खरदूषण दोनोंमें महायुद्ध होयरहाहै शस्त्रोंका प्रवाह होय रहाहै और इधर रावणने कटककर सिंहनादकिया उसमें बारम्बार सम राम यह शब्दकिया तब रामने जाना कि यह सिंहनाद लक्षमण ने किया सुन कर व्याकुल चित्त भर जानी भाई पै भीड़ पड़ी तब
रामने जानकीको कहा हे प्रिये भय मत करे क्षणएक तिष्ठ ऐसे कह निर्मलपुष्मोंमें छिपाई और जटायु को | कहा हे मित्र यह स्त्री अबलाजाति है इसकी रक्षाकरियो तुम हमारे परम मित्रहो धर्मी हो ऐसा कहकर आप |
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