Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥६२०॥
ढभ किया चाहे हैं सुप्रीव पाया मेवकी गाज समान वादित्रों के शब्द होते आए सो पाताल लंकाके लोग सुनकर व्याकुल भए तब लक्षमण ने विराधित से पूछा वादिनों का शब्द कौनका सुनिये है तब अनुराधा का पुत्र विराधित कहता भया हे नाथ यहवानर वंशियोंका अधिपति प्रेमका भरा तुम्हारे निकट आया है किहकंधापुर के राजा सूर्यरज के पुत्र पृथिवी पर प्रसिद्ध बड़ा बाली छोट्य सुग्रीव सो बाली ने तो रावणको सिर न नवाया सुग्रीवको राज्य देय बैरागी भया सर्व परिग्रह तजे सुग्रीव निहकंटक राज्य करे उसके सुतारा स्त्री जैसे शची संयुक्त इन्द्र रमें तैसे सुग्रीव सुतारा सहितरमें जिसके अंगदनामा पुत्रगुण रत्नों कर शोभायमान जिसकी थिवीमर कीति फैलरही है यह बात विराधित कहे है और सुग्रीव पायाही राम और सुग्रीव मिले रामको देख फूलगया है मुखकमल जिसको सुवर्णके आंगनमें बैठे अमृतसमान बाणी कर योग्य संभाषण करते भये सुग्रीव के संग जे बृद्ध विद्याधर हैं वे रामसो कहतेभए हे देव यह राजा सुग्रीव किहकंधापुरका पति महाबली गुणवान सत्पुरुषोंको प्रिय सो कोई एक दुष्ट विद्याधर माया कर इनका रूप बनाय इनको स्त्री सुतारा और राज्य लेयवे का उद्यमी भया है ये वचन सुन राम मम में चितवते भए यह कोई मुझसेभी अधिक दुखियाहै इसके बैठेही दूजापुरुष इसके घरमें प्राय धसाहै इसके राज्य विभवहै परन्तु कोई शत्रुको निवारिखसमर्थ नहीं लक्षमण ने समस्त कारण सुग्रीवफेमन्त्री जामवंतको पूछा जामवंत सुग्रीव के मन तुल्य है तब वह मुख्य मन्त्री महा विनय संयुक्त कहता भया हे माय कामकी फांसी कर बेढ़ा वह पापी सुतारा के रूपपर मोहित भया मायोमई सुग्रीवका रूप बनाय राजमन्दिर श्राया सो सुताराके महिल में गया सुतोरा महा सती अपने सेवकोंसे कहतीभई यह कोई दुष्ट विद्याधर विद्यासे
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