Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प
पुराव
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तेरे को तू क्या युद्ध करना जाने इत्यादि बचन परस्पर कहतेभए दोनों विद्याबल से युक्त परम युद्ध करते वारम्वार अपने लोगों करह हाकार जयजयकारादि शब्द करावतेभए गजा महेंद्र महा विक्रि शाक्त का धारक कोचकर प्रज्वलित है शरीर जिसका सो हनुमानपर श्रायुवों के समूह ढारता भया भुडी फरसी बाण शतघ्नी मुदार गदा पर्वतों के शिखर शालिवृच बटवृत्त इत्यादि अनेक आयुध हनुमान पर महेंद्रने चलाए सो हनुमान व्याकुलताको न प्राप्तभया जैसे गिरिराज महा मेघ के समूह से कंपाय मान न होय जेते महेंद्रने बाण चलाए सो हनुमानने उलका विद्याके प्रभाव से सब घूर डारे फिर आपने स्थसे उछल महेंद्र के रथ में जाय पडे दिग्गज की सूंड समान अपने जे हाथ तिनसे महेंद्र को पकड लिया और अपने रथ में आप शूरवीरोंसे पाया है जीतका शब्द जिन्होंने सही लोक प्रशंसा करते भए राजा महेंद्र हनुमानको महाचलवान परम उदयरूप देख महा सौम्य वाणीकर प्रशंसा करता भया हे पुत्र तेरी महिमा जो हमने सुनी थी सो प्रत्यक्ष देखी मेरा पुत्र प्रसन्नकीर्ति जो अब कानूने कदे न जीता रथनूपुरका स्वामी राजाइन्द्र उससे भी न जीतागया विजियार्धगिरिके निवासी विद्याधर तिन में महाप्रभाव संयुक्त समहिमाको धरे मेरापुत्रस तैंने जीता और पकडा धन्य पराक्रमते रामहावीर्यको घरे तेरे समान और पुरुष नहीं और अनुपमरूप तेरा और संग्राम में अद्भुत पराक्रम, हेपुत्रहनूमान तैने हमारे सब कुल उद्योतकिए तू चरमशरीरी अवश्य योगीश्वर होयगा विनय आदि गुणोंसे युक्त परम तेज की राशि कल्याणमूर्ति कल्पवृक्ष प्रकटभयाहै तू जगतका गुरुकुलका आश्रय और दुःखरूप सूर्य कर जे तप्ताय - मान तिनको मेघसमान इस भांति नाना महेन्द्रने अति प्रशंसा करी और चांख भर आई और रोमांच
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