Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परास
utan
गले यह क्षत्रीका धर्म नहीं इसलिये इसका गर्व हरू तब क्रोधकर रगाके नगारे बजाए और ढोल वाजते भए शंखोंकी घनिभई योधावोंके आयुध झलकने लगे गजामहेंद्र परचक्र आया सुनकर सर्व सेना सहित बाहिर निकसा दोनों सेनामें महा युद्धभया महेंद्र ग्थमें चढ़ा माथे छत्र फिरता धनुष चढाय हनूमानपर आया सो हनूमानने तीनवाणोंमे उसका धनुष छेदा जैसे योगीश्वर तीन गुप्तिकर मानको छेनें फिर महेंद्रने दूजा धनु र लेनेका उद्यम किया उसके पहिले बाणोंसे रथसे घोड़े छूटाय दिए सो स्थ के समीप भ्रम जैसे मनके प्रेरे इन्द्रिय विषयों में म्रने फिर महेंद्रका पुत्र विमानों पैठ हनूमानपर पापा सो हनूमानके और उसके बाणचक्र कनक इत्यादि अनेक आयुधोंसे परस्पर महायुद्ध भया हनूमानने अपनी विद्यासे उसके शस्त्र निवारे जैसे योगीश्वर अ.त्मचिंतवनकर पर्गपहके समूहको निवारें उस ने अनेक शस्त्र चलाये सो हनूमानके एकभी न लगा जैसे मुनिको कामका एकभी वाण न लग जैसे तमों के समूह अग्निमें भस्म होय तैसे महेंद्रके पुत्रके सर्व शस्त्र हनूमानपर विफलगए और हनुमाह ने उसे पकडा जैन मर्पको गरुड पकडे तब राजा महेंद्र महारथी पुत्रको पकडा देख महा क्रोधायमानभग हनूमानपर पाया जैसे साहसगति समपर आयाथा हनूमाननी महा धनुषधारी सूर्य के रथ समान स्थपर चढा मनोहर है उस्में हार जिसके शूग्बीगेमें महाशूरवीर नानाकेसन्मुख भया सो दोनों में करोत कुठार खडग बागा श्रादि अनेक शत्रोंसे पवन और मेघ की न्याई महा युद्ध भया दोनों सिंह
समान महाउद्धत महाकोपके भरे बलवन्त अग्निके कणसमान रक्तनेत्र दोनों अजगरसमान भयानक || शब्द करते परस्पर शस्त्र चलावते गहास संयुक्त प्रकटहें शब्द जिनके परस्पर ५से शमन करें हैं धिक्कार
For Private and Personal Use Only