Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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मान को बेढ़ा जैसे मेघपटल सूर्यको पालादे तब हनूमान विद्याकी सर्व विधिमें प्रवीण महा पराक्रमी पद्म पुराण उसने शस्त्रोंके समूह अपने शस्त्रोंसे आप तक न श्रावने दिए तोमरादिक बाणोंसे तोमरादिक बाण १६५५॥
निवार और शक्तिसे शक्ति निवारी इसभांति परस्पर अतियुद्ध भया इसके बाण उसने निवारे उसके बाण इसने निवारे बहुत बेस्तक युद्धभया कोई नहीं हारे सो गौतमस्वामी गजा श्रेणिकसे कहे हैं । हे राजन हनुमानको लंकासुन्दरी बाणशक्ति इत्यादि अनेक श्रायुधोंसे न जीतती भई. और काम के बाणोंकर पीडित भई कैसे हैं कामके वाण मर्म के विदारनहारे कैसी है लंकासुन्दरी साक्षात लक्ष्मी 'समान रूपवन्ती. कमल लोचन सौभाग्य गुणोंसे गर्बितसो हनूमानके हृदयमें प्रवेश करती भई जिस के कर्ण पर्यत बाणरूप तीक्षण कटाक्ष नेत्ररूप धनुषसे चढे ज्ञानधीर्य के हरणहारे महा मुन्दर दुर्द्धर मनके भेदनहारे प्रवीण अपनी लावस्यतासे हरी है और सुन्दरताई जिन्होंने तब हनुमान मोहितहोय मनमें चितवताभया जो यह मनोहर प्रकार महाललित बाहिर तो विद्यावाण और सामान्य माण तिनकर मोहि भेदे है और पाभ्यन्तर मेरेमनको कामके बागोंसे बीधे है यह मोहि वाह्याभ्यंतर हणे । है तनमनको पीड़े है इस युद्धविषे इसके बाणोंसे मृत्युहोय तो भली परन्तु इसके बिना स्वर्ग में भी जीवना भला नहीं इसभांति पवनपुत्र मोहितभया और वहलेकामुन्दरीभी इसके रूपको देख मोहित भई करतारहित करुणा विषे आयाहै चित्त जिसका तब जो हनूमानके मारिवेको शक्ति हाथमें लीनी
थी सोशीघही हाथसे भूमिमें डारदई हनुमान पर नचलाई कैसे हैं हनुमान प्रफुल्लितहै तन और मन || जिनका और कमल दलसमानहें नेत्र निनके और पूर्णमासीके चन्द्रमासमानहै मुख जिनका नवयोवन ।
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