Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
n६३४॥
पुत्रके घर जाय पड़ा सो उसने उठाकर स्खलिया उस निमितसे चूद्र महाशोककर मित्रको कहताभया मुझे जोक्ता इच्छे है तो मेरा वही मयूर लामो विनयदत्तने कही मैं तुझे नमई मयूरकराय दूं और सांचेमोर मंगाय, वह पत्रमई मयूरपवनसे उड़गया सो राजपुत्रने राखा में कैसे लाऊं तब तुदने कही में वही लेउ स्त्नोंके न नेउं न सांचे लं विनयदत्त कहे जो चाहो सो लो वह मेहाथ नहीं तुद्र बारम्बार वही मांमे सो वहतो मुहथानुम पुरुषोत्तमहोय ऐसे क्यों भूलो वह पत्रोंकामयूर राजपुत्रकेहाथगयाविनयदत्त कैसे लावे इसलिए अनेक विद्याधसेंकीपुत्री सुवर्णसमान वर्ण जिनका श्वेत श्याम प्रारक्त तीनवर्णकोधरेहेनेत्र कमलजिनके सुन्दर पीवर 'स्तन जिनके कवली समान जंघा जिनकी और मुखकी कांतिकरशरदकी पूर्णमासी के चन्द्रमा को जीते मनोहर गुगों की धरणहारी तिनके पति होवो हे रघुनाथ महा भाग्य हमपर कृपाकसे यह दुःख का बढ़ावमहास शोक सन्ताप छोड़ो तब लक्षमण ओले । हे जाम्बूनन्द तैंने यह दृष्यंत यथार्थ न दिया हम कहे हैं सो सुनो एक कुसमपुर नामा नगर वहां एक प्रभवनामा गृहस्थ जिन के यमुना नामा स्त्री उस के धनपाल बन्धुपाल गृहपाल पशुपालक्षेत्र पाल सो यह पांचों ही पुत्र यथार्थ गुषों के धारक धनके कमाउ कुन्डम्ब के पालने में उद्यमी सदा लौकिक धन्धे करें क्षणमात्र पालस नहीं और इन से छोटा यात्मश्रेयनामा कुमार सो पुण्य के योग से देवों से भोग भोगे सो इस को माता पिता और बड़े भाई कटुक बचन कहें एक दिन यह मानी नगर पालि प्रमे था सो कोमल शरीर
खेदको प्राप्त भया उद्यम कस्ने क्ये असमर्थ सो पाप का मरण बांछता था उस समय उस के पूर्व पुण्य | कर्म के उदय से एकराज पुत्र इसे कहता भया, हे मनुष्य में पृथुस्थान नगर के राजा का पुत्र भानुकुमार ।
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