Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न हे महा प्रभाव संयुक्त परन्तु सीता के बियोग से व्याकुल चित्त मानों शची रहित इंद्र बिराजे हैं अथवा
रोहिणी रहित चन्द्रमा तिष्ठे है रूप सौभाग्य कर मंडित सर्व शास्त्रों के वेत्ता महाशूर बीर जिनकी सर्वत्र कीर्ति फैलरहीहै महा बुद्धिमान गुणवान ऐसे श्रीराम तिनको देखकर हनुमान आश्चर्यको प्राप्तभया तिनके शरीर की कांति हनुमान पर जायपड़ी प्रभाव देखकर वशीभूत हुवा पवन का पुत्र मनमें विचारता भया ये श्रीराम दशरथ के पुत्र भाई लक्ष्मण लोकश्रेष्ठ इनका प्राज्ञाकारी संग्राम में जिनके चंद्रमा समान उज्ज्वल क्षत्र देख साहसगति की विद्या वैताली ताके शरीर से निकस गई और इन्द्र भी मैंने देखा है परन्तु इनको देखकर परम आनन्द संयुक्त हृदय मेरा नम्रीभूत भया इसभान्ति आश्चर्य को प्राप्त भयाअंजनी का पुत्र श्रीराम कमललोचन तिनके दर्शनकोओगे पाया और लक्षमण ने पहिलेही रामसे कहराखी
सो हनुमान को दूर ही से देख उठे उरसे लगाय मिलं पररपर अतिस्नेह भया हनुमान अति विनयकर बैग आप श्रीराम सिंहासन पर विराजे भुज बन्धसे शोभितहै भुजा जिनकी महा निर्मल नीलाम्बर | मण्डित राजन के चूडामणि महा सुन्दर हार पहिरे ऐसे सोहें मानों नक्षत्रों सहित चन्द्रमाही है और दिव्य पीतांबर धारे हार कुरडल कर्पूरादि संयुक्त सुमित्रके पुत्र श्रीलक्षमण केसे सोहे हैं मानों विजुरी सहित मेघही है और वानर वंशियों का मुकट देवों समान पराक्रम जिसका राजा सुग्रीव कैसा सो मानों लोकपाल ही है और लक्षमण के पीछे बैग विराधित विद्याधर कैसा सोहे मानों लक्षमण नरसिंह काहे चक्ररत्न ही है रामके समीप हनूमान कैसा शोभता भया जैसा पूर्णचन्द्र के समीप बुध सोहे और | सुग्रीव के दोयपुत्र एक अंगज दूजा अंगद सो सुगन्धमाला और वस्त्र आभूषपादिकर मण्डित ऐसे सोहें
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