Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन, मानों यम कुवेर ही हैं और नल नील और सैंकड़ों राजा श्रीराम की सभामें ऐसे सोहें जैसे इन्द्र की ATM सभामें बैठ देव सोहें अनेक प्रकारकी सुगन्ध और प्राभूषणों का उद्योत उससे सभा ऐसी सौहं मानों | इन्द्रकी सभा है तब हनुमान आश्चर्य को पाय अतिप्रीति को प्राप्तभया श्रीरामको कहताभया । हे देव
शास्त्र में ऐसा कहाहै प्रशंसा परोक्ष करिये प्रत्यच न करिये परन्तु अापके गुणोंसे यह मन वशीभूत । भया । प्रत्यक्ष स्तुति करे है और यह रीति है कि आप जिनके आश्रय होय तिनके गुण वर्णन करे। सो जैसी महिमा अापकी हमने सुनी थी तैसी प्रत्यक्ष देखी श्राप जीवों के दयालु महा पराक्रमी परम हित गुणों के समूह जिनके निर्मल यशकर जगत् शोभापमानहै । हे नाथ सीताके स्वयम्बरविधान में । हज़ारों देव जिसकी रक्षाकरें ऐसा पत्रावर्त धनुष बापने चढ़ाया सो हमने सब पराक्रम सुनै जिनका पिता दशरथ माता कौशल्या भाई लक्षमण भरत शत्रुधन स्त्री का भाई भामंडल साराम जगोत्पति तुम धन्य हो । तुम्हारी शक्ति धन्य तुम्हारा रूप धन्य सागरावर्त धनुष का धारक लक्षमण सोसदा आज्ञाकारी धन्य यह । धीर्य धन्य यह त्याग जो पिताके वचन पालिवेअर्थ राज्यका त्यागकर महा भयानक बनमें प्रवेश किया।
और आपने हमारा जैसो उपकार किया तैसा इन्द्र न करे सुग्रीव का रूप कर साहसगति आयाथा। सो आपने कपिवंशका कलंक दूर किया अापके दर्शनकर वैताली विद्या साहसगतिके शरीर से निकस। गई आपने युद्ध में उसे हता सोअापनेतो हमारा बड़ा उपकार किया अब हम क्यासेवा करें शास्त्रको यह आज्ञा है जो आप सो उपकार करे और उसकी सेवा न करे उमको भारशुद्धतानहीं और जो कृतघ्न | उपकार भूले सो न्याय धर्म से वहिर्मुख हैं पापियों में महापापी हैं और अपराधीयों से निर्द, ई हैं सा उससे,
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