Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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विभीषण रावण का भई सो पापकर्म रहित श्रावकव्रत का पास्कहै रावण उसके वचनको उलंघे नहीं तिन दोनों भाईयोंमें अंतराय रहित परम प्रीतिहै सो विभीषण चातुर्यता से समझावेगा और रावण भी अपयशसे शंकेगा लज्जाकर सीता को पठाय देगा इसलिये विचारकर रावण पै ऐसा पुरुषभेजनाजोवात करनेमें प्रवीण होय और राजनीति में कुशल होय अनेक नय जाने और रावणका कृपापात्र होय ऐसा हेरो तब महोदधि नामा विद्याधर कहता भया तुम कछ सुनीहै लंकाकी चौगिरद मायामई यंत्र रचा है सो अाकाशके मार्ग से आयसके नहीं पृथिवी के मार्गसे जायसके लंका अगम्यहै महाभयानक देखानजाय ऐसा मायामई यंत्र बनायाहै सो इतने बैठे हैं तिनमें तो ऐसाकोऊ नहीं जो लंकामें प्रवेश करे इसलिये पयनंजयका पुत्र श्रीशैल जिसे हनुमान कहे हे सोमहाविद्यावान बलवान पराक्रमी प्रसाफ्रूपहै उसे याचो बह रावणका यस्ममित्र है और पुरुषोत्तम है सो रावणको समझाय विघ्न टारेगा तब यह बात सबने क्याण कस हनुमान के निकट श्रीभूतनामा दूत शीत्र पछया गौतमस्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे। समन महाबुद्धिवान होय और महाशक्ति को घरे होय और उपायकरें तो भी होनहार होय सोही होपजैसे उदयकाल में सूर्य का उदय होय ही लेसे जो होनहार सो होयही । इति उनतालीसयां पर्वसंपूर्णम् ॥ ___ अचानतर श्रीधूतनामा दूत पक्नके समसे शीघछी आकास के मार्गलो लक्ष्मी का निवास जो बीयुस्नगर अनेक जिनभवन लिवो शोभित वहांभया जहां मन्दिर सुवर्ष रत्नमई सो तिनकी माला
कार मण्डित कुन्दके पुष्प समान उज्वल सुन्दर झरोखोंसे शोभित मनोहर पवनकर स्मणीकसो दूत नगर || की शोभा और नगर के अपूर्व लोम देख माश्चर्यको प्रासमया फिर इन्द्र के महिल समान राजमन्दिर
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